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CJP की मदद से अनोवरा खातून FT के शिकंजे से आज़ाद, भारतीय नागरिकता साबित!

CJP की अथक मेहनत और कोशिशों के एवज़ असम की रहने वाली अनोवरा खातून ने दारंग ज़िले में FT की तरफ़ जारी नोटिस से राहत हासिल कर ली है. क़रीब 8 महीने के कड़े संघर्ष के बाद FT ने उनपर से बेबुनियाद आरोप हटाकर उन्हें भारतीय नागरिक घोषित कर दिया है. अनोवरा का केस असम बार्डर पुलिस के खाते में एक मिसाल की तरह दर्ज है जो लिखित काग़ज़ात और दस्तावेज़ों को मुहैय्या कराने पर ज़ोर डालता है.

अनोवरा खातून का जन्म और परवरिश असम के दारंग ज़िले में खारूपेटिया पुलिस स्टेशन के नागाजन गांव में हुई है. वह पिछड़े तबक़े के एक ग़रीब परिवार से नाता रखती हैं जहां उन्हें दो वक़्त रोटी के इंतज़ाम के लिए रोज़मर्रा की मशक़्क़त का सामना करना पड़ता है. उनके शौहर टैक्सी चालक हैं जबकि उनके पिता असरूद्दीन देउ ने 1966 और 1970 में मतदाता को तौर पर मौजूदगी दर्ज की है. उनकी माता का नाम मोईफुल नेसा है और उनका देहांत हो चुका है.

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

1988 के दौर में ब्रम्हपुत्र नदी में बाढ़ आने के बाद गांव सात्राकनारा से अनेक लोग विस्थापित हो गए थे जिसमें अनोवरा खातून का परिवार भी शामिल था. इस बाढ़ के बाद असरूद्दीन देउ और उनका परिवार नागाजन गांव में बस गया था जहां उन्होंने 1989 के चुनाव में वैध मतदाता के तौर पर मौजूदगी दर्ज की थी.

पहले से ही विस्थापित, ग़रीब और जीवन की बुनियादी ज़रूरतों के लिए जूझ रही अनोवरा को जब FT ने नोटिस सौंपा तो ये उनके लिए किसी आफ़त से कम नहीं नहीं था. काग़ज़ात ठीक करवाना और क़ानूनी पैरवी के लिए वकील और ज़रूरी स्त्रोतों को जुटाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी. ऐसे में CJP ने सही वक़्त पर उनके मामले की बगडोर संभाली और उन्हें क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक सहयोग प्रदान कर राहत दी. 1997 की वोटर लिस्ट, आधार कार्ड और ज़मीन के काग़ज़ात अनोवरा की नागरिकता की पैरवी में निर्णायक साबित हुए. CJP ने अनोवरा के माता-पिता और दादा-दादी से जुड़े काग़ज़ात भी FT के सामने बतौर सबूत रखे. इसके साथ ही अनोवरा के दो भाईयों नें भी उनके पक्ष में गवाही पेश की.

नागरिकता की जंग के दौर में अनेक मुश्किलें भी सामने आईं. जैसे अनोवरा के पिता का नाम दो जगहों पर वोटर लिस्ट में अलग-अलग दर्ज था. एक जगह उनका नाम असदेउ और दूसरी जगह अससरूद्दीन देउ के नाम से दर्ज था. नामों में ये ऐसी मामूली ग़लती अक्सर स्थानीय भाषा के प्रभाव या प्रशासनिक जल्दबाज़ी से पैदा हो जाती है. अनेक बार अशिक्षित होना भी इसमें बड़ी भूमिका निभाता है. जबकि स्पेलिंग की इस छोटी सी ग़लती के एवज़ अनेक लोगों की नागरिकता कटघरे में खड़ी कर दी जाती है. अनोवरा का मामला भी पेचीदा था लेकिन CJP की बदौलत आख़िर में ये साबित हो गया कि असुदेउ और असरूद्दीन देउ एक ही इंसान हैं जिनका नाम 1966, 1971 और 1989 की वोटर लिस्ट में शामिल है. जबकि माता मोईफुल नेसा का नाम 1989 और 1997 की लिस्ट में शामिल है जिससे साबित हुआ कि अनोवरा पर अवैध प्रवासी होने के आरोप ग़लत और बेबुनियाद हैं.

CJP की लीगल टीम ने काग़ज़ात के साथ ही अनोवरा के भाईयों को भी FT में गवाही के लिए राज़ी किया और वोटर लिस्ट पेश करते हुए दलील दी कि अनवरा के माता-पिता ने लगातार बतौर मतदाता मौजूदगी दर्ज की है. टीम ने 1966 और 1970 की लिस्ट भी पेश की जिसमें उनके पिता का नाम असुदेउ है जबकि 1989 की लिस्ट में उनका नाम असरूद्दीन देउ है. दोनों नामों की प्रमाणिकता साबित हो जाने से उनका मामला काफ़ी आसान बन गया.

21 मई, 2023 को CJP की असम टीम के इंचार्ज नंदा घोष, दारंग के DVM (District Voluntary Motivator) जोएनल आबेदीन और CJP की लीगल टीम के मेंबर एडवोकेट अब्दुल हई ने अनोवरा के निर्णय की कॉपी पेश की. नागरिकता हासिल होने पर लीगल टीम का अभार जताते हुए उन्होंने कहा कि –

‘अल्लाह तुमपर मेहरबान रहे!’

उनके शौहर नें भी डर और फ़िक्र के माहौल से राहत की सांस लेते हुए अभार जताया. उन्होंने कहा कि –

‘हम ग़रीब लोग हैं. हम FT के नोटिस के बाद सचमुच डरे हुए थे. लेकिन हमने जब ये मामला CJP को सौंपा तो फिर कोई मुशकिल पेश नहीं आई. हम संकट के समय में आपके सहयोग के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हैं, आपने इसकी कोई फ़ीस भी नहीं ली है.’

अनोवरा खातून की जीत समाज के हाशिए पर उन तमाम लोगों के लिए उम्मीद की किरन है जिन्हें नागरिकता संकट ने अपनी चपेट में लिया है. CJP मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इंसाफ़ और हक़ के रास्ते पर वंचितों के लिए लगातार सक्रिय है.

निर्णय की कॉपी यहां पढ़ें-

 

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