गृह मंत्रालय ने यह खुलासा किया है कि असम में लागू हुए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (National Register of Citizens या NRC) में शामिल और बाहर किए गए व्यक्तियों की पूरक सूची (supplementary list) सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित की गई थी।
7 दिसम्बर 2022 को राज्य सभा सांसद सुष्मिता देव ने यह प्रश्न पूछा था कि असम में NRC की प्रक्रिया कब पूरी होगी और सरकार उसे पूरा करने की दिशा में क्या कदम उठा रही है।
हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।
इस प्रश्न के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यनाद राय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार असम की NRC की सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गई थी। अपने उत्तर में उन्होंने आगे कहा- “मानिनीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शामिल व उससे बाहर हुए लोगों की पूरक सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गई है। मानिनीय सुप्रीम कोर्ट ने NRC के असम राज्य समन्वयक (state coordinator) को यह निर्देश दिया है कि आधार कार्ड संबंधी डाटा की सुरक्षा की तर्ज पर एक सुरक्षा तंत्र कायम करने के बाद ही शामिल व बाहर लोगों की सूची राज्य सरकार, केंद्र एवं भारत सरकार के महापंजीयक (Registrar General of India) को उपलब्ध कराई जाए।“
असम समझौते के अनुभाग 6 के अंतर्गत बनाई गई समिति की द्वारा पेश की जाने वाली रिपोर्ट की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे जाने पर राय ने कहा-“असम सरकार इस रिपोर्ट को लागू करने संबंधी कानूनी व संवैधानिक चुनौतियों का अध्ययन कर रही है।“
गृह मंत्रालय का यह कथन कि NRC में “शामिल व उससे बाहर हुए लोगों की सूची” राज्य सरकार, केंद्र सरकार एवं भारत सरकार के महापंजीयक को सुरक्षा तंत्र स्थापित करने के बाद ही उपलब्ध करवाई जाएगी, चकित करने वाला है चूंकि भारत के महापंजीयक ने ही 31 अगस्त 2019 की सूची जारी की थी। सूची प्रकाशित होने को अब तीन साल से ज्यादा (तीन साल और चार महीन) बीत चुके हैं एवं ऐसे उनीस लाख लोग व उनके परिवार हैं जो लगातार दुविधा से जूझ रहे हैं चूंकि उन्हें सरकारी योजनाओं व मूलभूत सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा।
गृह राज्य मंत्री का पूरा उत्तर यहाँ पढ़ जा सकता है:
असम में NRC के पुनः सत्यापन का मामला
मई 2021 में NRC के असम राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में यह अपील दायर की कि 31 अगस्त 2019 में जारी NRC की सूची का पुनः सत्यापन किया जाए चूंकि गंभीर अनियममित्ताओं के चलते कई अयोग्य व्यक्ति भी सूची में शामिल हो गए हैं। यह बात स्पष्ट है कि राज्य समन्वयक को इस कदम के लिए असम के शासक वर्ग से संकेत किया गया जिसका केंद्र में सत्तारूढ पार्टी ने समर्थन किया।
इस हस्तक्षेप आवेदन (Intervention Application) में उन्होंने यह भी अपील की कि मतदाता सूची से अवैध वोटरों के नाम काट दिए जाएँ व 1951 की NRC सूची का नवीनीकरण किया जाए। आवेदन में अनियममित्ताओं के संदर्भ में कहा गया है कि मतदाता सूची का सही प्रकार सत्यापन न होने एवं कार्यालय व घर-घर जाकर सत्यापन करने की प्रक्रिया में गड़बड़ी होने के कारण “सहायक दस्तावेज़ों में हेरफेर व फर्जीबाड़ा” पकड़ में न आ सका। अदालत को दिए आवेदन में गिनवाई गई इन गड़बड़ियों की सूची इस प्रकार है:
- योग्य व्यक्ति सूची से बाहर: आवेदन में कहा गया है कि सैम्पल जांच से यह सामने आया कि 2018 की प्रारूप सूची (draft list) में शामिल नहीं किए गए 40 लाख लोगों में से 3 लाख लोगों ने सूची से बाहर होने के खिलाफ दावे व आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया में आवेदन ही नहीं किया। यह पाया गया कि इनमें से 50,695 लोग जिनमें 7,700 असम के मूल निवासी व 42,925 अन्य राज्यों के मूल निवासी हैं, सूची में शामिल होने के पात्र हैं।
- मूल निवासी साबित करने की मियाद का दुरूपियोग: आवेदन में मूल निवासियों के संदर्भ में कहा गया है कि कई लोगों ने इस प्रावधान का गलत इस्तेमाल करके NRC में जगह पा ली है। 17,196 लोगों को उनके दस्तावेज़ों के सत्यापन के नतीजे नकारात्मक आने के बावजूद NRC में जगह मिल गई चूंकि अधिकारियों ने उन्हें दस्तावेज़ पुनः सत्यापित करवाने का अवसर दे दिया।
- विप्रो कंपनी के खिलाफ आरोप: विप्रो कंपनी, जिसके पास NRC के आंकड़ों का डेटाबेस संचालित करने का ठेका था, पर भी कई आरोप लगाए गए। ऐसा बताया गया है कि 13 सितंबर 2019 तक भी विप्रो को ईमेल द्वारा सूची में नाम जोड़ने या घटाने के लिए कहा जा रहा था, जो कि पूर्णतः गैर कानूनी है। आवेदन में इसका उदाहरण देते हुए कहा गया कि जहाँ 31 अगस्त 2019 को सूची से बाहर हुए लोगों की संख्या 19,06,657 थी, 14 सितंबर को यह संख्या 19,22,851 हो गई!
- पूर्व NRC समन्वयक के खिलाफ आरोप: हितेश देव शर्मा ने NRC के असम राज्य समन्वयक का पदभार प्रतीक्षा हजेला से जब ग्रहण किया, उसी समय NRC की अंतिम सूची जारी होने के बाद विवाद शुरू हो गया। उन्होंने अब यह आरोप लगाया है कि न सिर्फ हजेला ने आधिकारिक ईमेल आइडी का पासवर्ड उन्हें नहीं दिया बल्कि यह भी पता चला कि उनके कंप्युटर को पिछला डाटा मिटाने के बाद फॉर्मैट कर दिया गया है।
- अस्वीकृति पर्ची देने में देरी: NRC के राज्य समन्वयक ने अदालत से यह भी कहा कि अस्वीकृति पर्ची (rejection slips) बनाने के दौरान ‘कई महत्वपूर्ण बिन्दु’ उभर कर आए जिसके चलते इस प्रक्रिया में देरी हुई। अस्वीकृति पर्चियाँ NRC के अंतर्गत आने वाली दावों व आपत्तियों संबंधी प्रक्रिया (claims and objections process) में निस्तारण अधिकारियों द्वारा लिस्ट में शामिल होने का दावा खारिज होने के सकारण आदेशों (speaking orders) का कारण बताने के लिए जारी की जाती हैं। 2019 की NRC में से 19 लाख लोग बाहर थे और उन सभी के लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य थी।
पुनः सत्यापन की मांग के पिछले प्रयासों की पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट में NRC कीं सूची के पुनः सत्यापन का मुक़दमा Assam Public Works नामक गैर सरकारी संस्था ने लड़ा और इसी ने सम्पूर्ण सूची को पुनः सत्यापित करने की मांग उठायी। लेकिन उच्चतम न्यायलय ने इस अपील को 23 जुलाई 2019 को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि “इस सन्दर्भ में हमने इस मुद्दे को बेहतर समझने वाले संयोजक श्री हजेला, और विशेषकर दिनांक 18.7.2019 की उनकी रिपोर्ट में रखे गए पक्ष को संज्ञान में लिया है जिसके अनुसार सूची में शामिल होने के लिए किये गए दावों की पड़ताल और उनपर फैसला करने के दौरान ही 27% पुनः सत्यापन हो चुका है। और साथ ही, उक्त रिपोर्ट में संयोजक महोदय ने ऐसे पुनः सत्यापनों का जिलेवार आंकड़ा रखा है जो दावों व आपत्तियों पर फैसला करने वाली प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है। इस तथ्य के आलोक में हम भारत सरकार व असम सरकार की ओर से दोबारा सूची की नमूना जांच की अपील को स्वीकार नहीं कर सकते।”
इसके अतिरिक्त अदालत ने घोषित विदेशी नागरिक (Declared Foreigner), संदेहास्पद मतदाता (Doubtful Voter) एवं विदेशी ट्राइब्यूनल के समक्ष विचाराधीन (Pending Foreign Tribunals) श्रेणी में आने वाले व्यक्तियों की संतानों/वंशजों के विषय में आदेश जारी करते हुए कहा कि “3 दिसंबर 2004 के पूर्व जन्मे व्यक्तियों के संदर्भ में, यदि माता-पिता में से DF, DV अथवा PFT श्रेणी में नहीं आने वाले व NRC सूची में शामिल होने के योग्य व्यक्ति से विरासत ली गयी है जबकि DF, DV अथवा PFT श्रेणी में शामिल व्यक्ति से विरासत नहीं ली गयी है तो ऐसे वंशज NRC में शामिल होने के योग्य हैं।”
परन्तु असम की भाजपा सरकार पुनः सत्यापन को लेकर अड़ी रही और सितम्बर 2020 में 10-20 प्रतिशत पुनर्सत्यापन की मांग को लेकर एक वक्तव्य राज्य की विधान सभा के समक्ष पेश किया गया।
13 अक्टूबर 2020 को हितेश देव शर्मा ने सभी जिलाधिकारियों एवं नागरिकता पंजीयन सम्बन्धी जिला पंजीयकों (District Registrars of Citizenship Registration या DRCR) को “NRC की अंतिम सूची से सभी अयोग्य लोगों को हटाने” सम्बन्धी निर्देश जारी किया। इस निर्देश के अनुसार अयोग्य लोगों में विदेशी नागरिक, संदेहास्पद मतदाता एवं विदेशी ट्राइब्यूनल के समक्ष विचाराधीन व्यक्तियों के साथ उनके वंशज भी शामिल थे।
इसके चलते शर्मा के खिलाफ अदालत में दो अवमानना याचिकाएं दाखिल की गयीं जिनमें से एक जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने यह कहते हुए की कि शर्मा का NRC की अंतिम सूची के पुनः सत्यापन का आदेश अदालत के पिछले फैसलों का उल्लंघन करता है जबकि दूसरी याचिका All Assam Minorities Students Union द्वारा दाखिल की गयी थी। इन याचिकाओं का कहना है कि हितेश देव शर्मा द्वारा 13 अक्टूबर 2020 को दिए गए पुनः सत्यापन के निर्देश के कारण सूची से बाहर व्यक्तियों द्वारा अपील कर पाने की प्रक्रिया को लंबित कर दिया है जिसके चलते उनकी पहचान पर संकट आन पड़ा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस तरह का एकतरफा आदेश सर्वोच्च अदालत के 7 अगस्त 2018, 23 जुलाई 2019 एवं 13 अगस्त 2019 के फैसलों की सोची समझी अवज्ञा है। जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इन अवमानना याचिकाओं के सम्बन्ध में शर्मा को नोटिस जारी किया।
शर्मा ने अगस्त 2019 की NRC की अंतिम सूची का मुखर विरोध करते हुए सितम्बर में समाचार संस्था ANI से कहा कि “NRC में कई त्रुटियां व गलत एंट्रियां हैं। विदेशियों की एक बड़ी संख्या को NRC में जगह दे दी गयी है।”
क्या NRC की 2019 की सूची अंतिम नहीं थी?
इस अगर-मगर की स्थिति से यह प्रश्न तो उठता ही है कि क्या ‘अंतिम सत्य’ की तरह प्रचारित 2019 का NRC जनता के पैसे की अपूर्ण बर्बादी नहीं था?
31 अगस्त 2019 को जारी की गयी NRC सूची एक विशालकाय प्रक्रिया थी जिसके अंतर्गत असम के 3.2 करोड़ लोगों ने 6 करोड़ से ज़्यादा दस्तावेज़ जमा किये जिनका सात स्तरों पर परीक्षण होने के बाद ही उनका नाम NRC में जोड़ा गया। आख़िरकार इस सूची में से 19,06,657 लोग बाहर किये गए। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन्हें या तो विदेशी ट्राइब्यूनल द्वारा विदेशी नागरिक घोषित किया गया या असम सीमा पुलिस द्वारा संदिग्ध विदेशी माना गया या चुनाव आयोग द्वारा संदेहास्पद मतदाता या D-Voter माना गया। उनके बंधू-बांधवों एवं संतानों को भी इस सूची में जगह नहीं दी गयी।
सितंबर 2021 में करीमगंज ज़िले के विदेशी ट्राइब्यूनल द्वारा एक व्यक्ति को भारतीय नागरिक करार देते हुए 2019 की NRC सूची को अंतिम माना गया। सरकारी वकील ने 2019 की NRC के अंतिम होने पर सवाल उठाये जिसके जवाब में अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संपन्न की गयी 2019 की NRC प्रक्रिया अंतिम है। अदालत ने यह कहा कि असम की NRC सूची 1955 के नागरिकता अधिनियम (विशेषकर धारा 14A) के प्रावधानों व 2003 के नागरिकता (नागरिकता पंजीयन एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र अथवा Registration of Citizens and Issue of National Identity Cards) नियमों के अंतर्गत तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व निगरानी के तहत कार्यान्वित की गयी है। अदालत ने यह भी याद दिलाया कि सर्वोच्च न्यायलय द्वारा असम में NRC को समयबद्ध तरीके से तैयार करने का निर्देश दिया गया था और साथ ही एक समय सारिणी जारी की थी जिसे “पूर्ण रूप से तैयार NRC का अंतिम रूप” नाम दिया गया। अदालत ने कहा- “इसी के अनुसार NRC ड्राफ्ट एवं पूरक सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गयी जिसे NRC असम की आधिकारिक वेबसाइट पर देखा जा सकता है और वहां भी इसे ‘अंतिम NRC’ कहा गया है। वर्त्तमान में यही क़ानूनी यथास्थिति है।” अदालत ने कहा कि हालांकि अंतिम NRC में शामिल नागरिकों को राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी नहीं किये गए हैं लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि अगस्त 2019 की NRC ही असम की अंतिम NRC है।
यहाँ यह बताना महत्वपूर्ण है कि 2021 के असम विधानसभा चुनावों से पहले मार्च में जारी किये गए भाजपा के घोषणापत्र में “संशोधित NRC” का वायदा किया गया था।
हालाँकि NRC सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संपन्न हुई प्रक्रिया थी लेकिन असम सरकार ने इसे मानने से साफ़ इंकार कर दिया है।
अप्रैल 2022 में हितेश देव शर्मा ने असम के विदेशी ट्राइब्यूनल को लिखा कि अगस्त 2019 की NRC सूची पर भरोसा न किया जाए एवं न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्रक्रियाओं में मामलों के निबटारे के लिए इसे सबूत के रूप में स्वीकार न किया जाए। ट्राइब्यूनल के एक सदस्य ने 10 मई को ‘स्क्रॉल’ के साथ बातचीत में कहा कि यह पत्र शर्मा द्वारा “हस्तक्षेप” था जो कि साफ़ तौर पर उनके “अधिकार क्षेत्र” और “शक्ति की सीमा” से बाहर था। इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत सरकार के महापंजीयक ने खुद शर्मा को कई पत्र लिखकर सूची से बाहर लोगों को दावा ख़ारिज होने की पर्ची जारी करने को कहा है ताकि उनके मामलों का निबटारा विदेशी ट्राइब्यूनल के अंतर्गत हो सके। तीन साल से अधिक होने पर भी ऐसी अस्वीकृति पर्चियां जारी नहीं की गयी हैं जिससे NRC से बहार हुए लोगों का जीवन अधर में लटक गया है।
भारत सरकार के महापंजीयक द्वारा 2003 के नागरिकता नियमों की धारा 7 के अंतर्गत NRC सूची प्रकाशित करना अभी भी बाकी है।
ऐसा तब हुआ है जबकि महापंजीयक और NRC संयोजक द्वारा संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में 31 अगस्त 2019 की NRC को “अंतिम” बताया गया था।