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असम नागरिकता संकट: सबसे ज्यादा संकट में राज्य का वंचित वर्ग

असम के धुबरी ज़िले के एक हिस्से में संघर्ष, निराशा के बाद जागी उम्मीद की एक नई कहानी सामने आई है. CJP के DVM (District Voluntary Motivator) हबीबुल बेपारी और कम्युनिटी वालंटियर मून काज़ी ने इस दर्दनाक कहानी और मतलेब अली को भेजे गए FT के नोटिस का संज्ञान लिया है.

मतलेब  36 साल के प्रवासी मज़दूर हैं और परिवार का ख़र्च चलाने के लिए कई सालों से असम के बाहर काम कर रहे हैं. आर्थिक संकट के कारण छोटी उम्र में ही उनकी पढ़ाई-लिखाई छूट गई थी और उन्होंने अपने समुदाय के अन्य लोगों की तरह परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी संभाल ली थी. राज्य के बाहर रहने के बावजूद वो अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का बख़ूबी इस्तेमाल कर रहे थे और उन्हें इस बात पर गर्व था कि उन्होंने हमेशा वोट दिया है. आधार कार्ड, राशन कार्ड और 1951 की NRC में परिवार का नाम होने के बावजूद वो एक भारतीय के तौर पर हमेशा सुरक्षित महसूस करते थे. उन्होंने सोचा था कि इसपर कभी सवाल नहीं किया जाएगा.

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

लेकिन इस मानसून परिवार के साथ ईद मानने के लिए उनका आना एक दुस्वप्न बन गया जब सिविल ड्रेसकोड में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने उन्हें नोटिस सौंपा.  

कोर्ट में हाज़िरी लगाने का आदेश और विदेशी घोषित हो जाने के ख़तरे ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था. इससे तंग आकर उन्होंने नागरिकता पर राज्य के आक्षेपों को लेकर ग्रामवासियों से मदद की मांग की. हालांकि इससे पहले भी यह त्रासदी मतलेब के परिवार को घेर चुकी है. पिता के असमय देहांत और भारत-बंग्लादेश बॉर्डर पर रामरायकुटी गांव में आग लगने से घर उजड़ने के बाद यह अपनी तरह की कोई पहली घटना नहीं थी. उनके हौसले औऱ जज़्बे के एवज उन्होंने फिर अपने पैतृक घर के पास दोबारा घर बना लिया था और 1997 में BLO की मदद से मतदान के लिए सूची में नाम शिफ़्ट करवा लिया था.

एक भारतीय के तौर पर अपनी पहचान मज़बूत करने के लिए मतलेब ने कड़ी मेहनत की और NRC प्रक्रिया के दौरान काग़ज़ात दुरूस्त कराने का प्रयास किया. नतीजे में उन्होंने ज़मीन के काग़ज़ात और 1951 के NRC रिकार्ड को सफलतापूर्वक हासिल कर लिया था लेकिन फिर FT का नोटिस जारी होने पर उन्हें अनुभव हुआ कि सिर्फ़ सरकारी काग़ज़ात होना काफ़ी नहीं है. इसी बीच भ्रष्टाचार ने भी उनकी निराशा को बढ़ा दिया जब एक पुलिस अधिकारी ने मामले को हल करने के लिए मतलेब की पत्नी से 3000 रूपए की मांग की. पुलिस अधिकारियों द्वारा रिश्वत लेने की घटनाएं क्षेत्र में सामान्य हैं जिसके बारे में आमजन बख़ूबी जानते हैं. इसलिए बहादुरी का परिचय देते हुए मतलेब   की पत्नी ने इस ग़ैरक़ानूनी मांग को स्वीकर नहीं किया.

इस नोटिस के कारण मतलेब ईद पर सकून से इबादत तक नहीं कर सके हैं. इस संकट के बीच CJP वालंटियर मून काज़ी ने उन्हें संगठन और असम में मानवतावादी संघर्षों से परिचित कराया है. CJP ने न्याय की लड़ाई में उनका साथ दिया है जिससे मतलेब के संकल्प को बल मिला है.

बिलखती पत्नी और मां के साथ निराशा में डूबे मतलेब ने कहा- “मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है कि मुझे क्यों निशाना बनाया जा रहा है, मेरे पिता मुझसे बेहद छोटी उम्र में जुदा हो गए थे और अब मैं अपने बच्चों को अकेला छोड़कर डिटेंशन कैंप में नहीं जाना चाहता हूं. कृपया मेरी मदद करें.” मतलेब   की आवाज़ में डर साफ़ तौर पर देखा जा सकता था. CJP के DVM हबीबुल बेपारी ने मतलेब से मुलाक़ात की और पाया कि शिक्षित न होने के कारण वो क़ानूनी लड़ाई लड़ने में असक्षम हैं. हबीबुल ने मतलेब और उनके परिवार को आशवासन दिया कि उचित प्रक्रिया का पालन करने पर उन्हें चिंता नहीं करनी पड़ेगी.

मतलेब अली की कहानी बताती है कि असम में नागरिकता संकट कैसे अनेक तरीक़ों से लोगों को प्रभावित कर रहा है. असम में CJP के बहुमुखी प्रयास क़ानूनी मदद से अलावा भी प्रभावित लोगों को सहारा देते हैं. CJP ने इस बीच उन लोगों तक पहुंच बनाई है जिन्हें ऐसे सहयोगी संगठनों के बारे में पता नही है. नागरिकता की प्रक्रिया से विलग इससे लोगों के बीच आपसी संवाद भी तय होता है. CJP लगातार उन लोगों से संपर्क में है जो अपनी नागरिकता की जंग लड़ रहे हैं या जो डिटेंशन कैंप से आज़ाद हो गए हैं या जिन्होंने अपनी नागरिकता साबित कर ली है. इससे यह भी पता चलता है कि नागरिकता को लेकर संगठन का नज़रिया मानवीय है.      

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