एक धूर्त साज़िश के तहत, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) ने एक नया आदेश जारी किया है, जिसके कारण 2 लाख से अधिक भारतीयों के नाम नागरिकों के रजिस्टर से हटा दिए जा सकते हैं. NRC, असम में रहने वाले ‘वैध’ भारतीय नागरिकों का एक रिकॉर्ड है, और उसे 1951 के बाद पहली बार उद्दिनांकित किया जा रहा है, ऐसा दिखाया जा रहा है कि इसके पीछे की मंशा ‘अवैध बांग्लादेशी आप्रवासियों’ को बाहर निकालने की है.
परन्तु 2 मई, 2018 को पारित NRC राज्य समन्वयक के बेतुके आदेश के अनुसार, असम के विभिन्न जिलों के सभी डिप्टी कमिश्नरों को, हर तथाकथित “घोषित विदेशी” (DF) के भाई-बहनों और अन्य परिवार के सदस्यों का नाम भी NRC से ‘पेंडिंग’ याने फ़िलहाल बाहर रखने को कहा गया है. इसलिए अब भले ही परिवार से एक व्यक्ति घोषित विदेशी (DF) है, परिवार के हर सदस्य का नाम NRC से फ़िलहाल बाहर रखा जाएगा.
हालाकि २५ मई को NRC राज्य समन्वयक ने स्पष्ट किया कि घोषित विदेशियों के परिवार जनों के नाम तब तक ‘पेंडिंग’ नहीं रखे जाएं जब तक बॉर्डर पुलिस की रिपोर्ट यह नहीं कहती की उनके बारे में फ़ॉरेनर्स ट्राइब्युनल को सूचित किया गया है. लेकिन इसके बावजूद भी अफरा तफरी मची हुई है और कई जगहों पर लोगों के नाम ‘पेंडिंग’ रखे गए हैं.
इस अन्याय के खिलाफ़ हमने एक याचिका दाखिल की है. यदि आप भी चाहते हैं की भारतीय नागरिकों पर असम में NRC के बहाने अत्याचार ना हो, तो अभी हमारी याचिका पर हस्ताक्षर कीजिये.
साल 1985 से लगभग एक लाख लोगों को विदेशी घोषित किया चुका है. ट्राइब्युनल के लगभग 20,000 आदेश (अधिकतर एकतरफा, जिसे दोनों पक्षों को बिना सुने ही जारी किया गया) को विभिन्न न्यायिक मंचों द्वारा रद्द कर दिया गया है. बहरहाल, अभी भी 80,000 DF हैं.
वकील अमन वदूद, जो असम में इस मामले पर बारीकी से नज़र बांधे हुए हैं, का कहना है, “मान लीजिए, औसतन एक तथाकथित विदेशी नागरिक के 4 भाई- बहन हैं. यह कुल मिलाकर तीन लाख बीस हजार भाई-बहन बन जाते है. घोषित विदेशियों को मिलाकर, यह गिनती कुल चार लाख लोगों तक पहुँच जाती है,” वे आगे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि, “उन 4 लाख लोगों के परिवार के सदस्यों में उनके बच्चे और नाती-पोते भी शामिल हैं, औसतन प्रत्येक परिवार में कम से कम 6 सदस्य हैं. गरीब और अशिक्षित लोगों के बीच उच्च प्रजनन दर पर विचार करते हुए यह संख्या भी बहुत कम अनुमान है, जिसके कारण इन्हें विदेशियों के रूप में घोषित किया गया है. इस प्रकार यह गिनती बीस लाख से अधिक लोगों तक पहुँचती है,” वे बताते हैं.
इस फैसले के अनुसार, “पुलिस अधीक्षक (ब) को उन घोषित विदेशी नागरिकों के भाइयों बहनों और अन्य परिजनों से जुड़ी जानकारी रखना और फ़ॉरेनर्स ट्राइब्युनल को देना आवश्यक हो गया है. क्योंकि इन सभी जानकारी के बिना उन्हें NRC की सूची में शामिल नहीं किया जायेगा. नागरिक रजिस्टर के स्थानीय रजिस्ट्रार (LRCR) को संबंधित भारतीय ट्रिब्यूनल द्वारा डी-मतदाताओं (संदेहजनक मतदाता या doubtful voter) की प्रक्रिया के समान ही उनकी भारतीय नागरिकता, सभी ऐसे व्यक्तियों की योग्यता पर निर्णय हो जाने, तक लंबित स्थिति रखनी होगी. ऐसी स्थिति में LRCR को ऐसे फैसले “DF” के रूप में दर्ज करके LRCR टिप्पणियों के साथ “लंबित” के रूप में अपने फैसले दर्ज करना होगा. DF का मतलब भाई-बहन और घोषित विदेशियों (DF) के अन्य परिवार के सदस्य होगे.”
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है:
DF स्थिति विदेशियों के ट्राइब्युनल द्वारा प्रदान की जाती है. वर्तमान में असम में चल रहे ऐसे 100 ट्राइब्युनल हैं. जिन लोगों की नागरिकता संदिग्ध है, उन्हें अपनी नागरिकता के सबूत प्रदान करना आवश्यक है अथवा उन्हें DF के रूप में नामित हो जाने का जोखिम है. कई बार लोगों के नाम सूची से कुछ मामूली विसंगतियों के कारण हटा दिए जाते हैं जैसे कि वे अपने नाम कुछ अलग तरीके से लिखते हैं!
नागरिकता अधिनियम, 1955 और अन्य नियमों के प्रावधानों के अनुसार NRC का अद्यतनीकरण किया जा रहा है. नागरिकता अधिनियम के सेक्शन 3(1)(ए) में कहा गया है कि जनवरी, 1950 के 26 वें दिन या उसके बाद और 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ हर व्यक्ति, जन्म से भारत का नागरिक होगा. अब भी अगर किसी व्यक्ति को “विदेशी” घोषित किया जाता है, तो उसके भाई- बहन जो जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुए होंगे, जिन्हें जन्म से भारत का नागरिक माना जाता है उनका क्या होगा? इसके अलावा, 25 मार्च 1971 के बाद यदि वास्तव में अवैध रूप से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने वाले व्यक्ति को आखिरकार ट्रिब्यूनल द्वारा “विदेशी” घोषित किया गया है, अगर उसके भाई-बहन तारीख से पहले प्रवेश कर चुके हों तो उनका क्या होगा? नागरिकता अधिनियम, 1955 के खंड 6 (a) के अनुसार, वे “विदेशी” नहीं हो सकते हैं. इसलिए 2 मई, 2018 का आदेश, नागरिकता अधिनियम 1955 से पूरी तरह से विरोधाभासी है.
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 2 मई, 2017 के आदेश में सुनाये फैसले के अनुसार न्यायिक अधीक्षक (बी) से घोषित विदेशियों के भाइयों, बहनों और अन्य परिवार के सदस्यों की स्थिति में पूछताछ करने के लिए कहा है और इसके बाद सक्षम विदेशियों के ‘ट्रिब्यूनल के सन्दर्भ में जानकारी हासिल करने का आदेश दिया है. इसके अलावा, उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए और प्रत्येक मामले में एक उचित जांच की जानी चाहिए. नया आदेश सीमा पुलिस या विदेशियों के ट्रिब्यूनल द्वारा किसी भी पूछताछ या जांच के बिना भी लंबित सूची में लोगों के नाम रखेगा. गुवाहाटी उच्च न्यायलय का पूरा आदेश यहाँ पढ़ा जा सकता है.
2 मई, 2018 के आदेश में घोषित “विदेशियों” के भाई-बहनों और परिवार के सदस्यों को डी-मतदाताओं उर्फ ”संदिग्ध मतदाता” की सूची में रखा है. 1997 में भारत के निर्वाचन आयोग ने मतदाताओं की सूची की जांच शुरू की थी. यदि आयोग ने ऐसे किसी भी मतदाता को पाया, जिसका नागरिकता दस्तावेज अपर्याप्त प्रतीत हो रहा है, आयोग ने उन्हें ‘डी‘ मतदाता या ‘संदिग्ध‘ मतदाता के रूप में चिह्नित कर दिया. यद्यपि पूरी प्रक्रिया कथित रूप से मनमाने तरीके से की गयी है, लेकिन कम से कम चुनाव आयोग का कहना है कि एक व्यक्ति को संदिग्ध मतदाता के रूप में चिह्नित करने से पहले एक जांच हुई है. लेकिन अब एनआरसी किसी भी पूछताछ के बिना संदिग्ध मतदाताओं के साथ DF के परिवार के सदस्यों को एक समान समझ रही है!
30 जून को NRC की समय सीमा समाप्त हो रही है और असम में 68.27 लाख परिवारों के 3.29 करोड़ लोगों ने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) में 6.5 करोड़ दस्तावेज जमा किए हैं. लेकिन NRC ने हाल ही में कानूनी वैध नागरिकों के रूप में केवल 1.9 करोड़ लोगों की एक सूची प्रकाशित की है. इसलिए, 1.39 करोड़ असमिया, वैध नागरिकता के रद्द होने के खतरे में हैं. वहां लोग आमतौर पर बेहद गरीब हैं और उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है. उनमें से बड़ी संख्या में मुसलमान है, जिन पर आरोप लगाया जा रहा है कि वे या तो रोहिंग्या या बांग्लादेशी हैं. अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के साथ सत्तारूढ़ विवादों के व्यापक पिछले इतिहास को देखते हुए यह सबसे अधिक मुसीबत और तबाह करने वाला दौर है. इसके अतिरिक्त, असम के मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल ने हाल ही में घोषणा की है कि असम-बांग्लादेश सीमा दिसंबर 2018 तक पूरी तरह से बंद कर दी जाएगी. यह एक बार फिर इशारा करता है कि अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों ने देश में प्रवेश कर रहे थे, एक तर्क जिसे तोड़-मरोड़ कर सामने रखा जाता है और हर ऐसे मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है जिनके पास उचित कागजात नहीं हैं.
अनुवाद सौजन्य – सदफ़ जाफ़र, मनुकृति तिवारी और अमीर रिज़वी
फीचर छवि सौजन्य PTI
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