वाराणसी में सैकड़ों मकान बाढ़ की चपेट में हैं। कहीं लोगों के मकानों में बाढ़ का पानी भर गया है, तो कहीं दुकानों और कारखानों में, जिससे जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
लोग अपने घरों की छतों पर रहने को मजबूर हैं और काफ़ी लोग तो पलायन कर रहे हैं। मीरा घाट ,कोनिया, सराइयां, बटलोइया, तीन पुलौवा, नख्खी घाट, आदि बुनकर बाहुल क्षेत्र हैं जहां बुनकर अपने घरों में पावरलूम लगाकर साड़ी की बुनाई करते हैं, बाढ़ का पानी घरों में भर जाने से उनका करघा डूब गया है सारे घरों की बिजली भी काट दी गई है जिसकी वज़ह से उनके सामने रोज़ी रोटी का घोर संकट खड़ा हो चुका है। साथ ही बाहर आने-जाने के सभी रास्ते भी बंद हो गए हैं।
सीजेपी का ग्रासरूट फेलोशिप प्रोग्राम एक अनूठी पहल है जिसका लक्ष्य उन समुदायों के युवाओं को आवाज और मंच देना है जिनके साथ हम मिलकर काम करते हैं। इनमें वर्तमान में प्रवासी श्रमिक, दलित, आदिवासी और वन कर्मचारी शामिल हैं। सीजेपी फेलो अपने पसंद और अपने आसपास के सबसे करीबी मुद्दों पर रिपोर्ट करते हैं, और हर दिन प्रभावशाली बदलाव कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इसका विस्तार करने के लिए जातियों, विविध लिंगों, मुस्लिम कारीगरों, सफाई कर्मचारियों और हाथ से मैला ढोने वालों को शामिल किया जाएगा। हमारा मकसद भारत के विशाल परिदृश्य को प्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ जोड़ना है, जो अपने दिल में संवैधानिक मूल्यों को लेकर चलें जिस भारत का सपना हमारे देश के संस्थापकों ने देखा था। CJP ग्रासरूट फेलो जैसी पहल बढ़ाने के लिए कृपया अभी दान करें।
स्थानीय बुनकरों के अनुसार, पहले से ही वे लोग सरकार की गलत नीतियों से और बनारसी साड़ी की मंदी से जूझ रहे थे, ऊपर से बाढ़ ने उनको पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। उनमें से कुछ का आरोप है कि सरकार या प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई सहयता हमें नही मिली है। डीएम साहब का दौरा हुआ था उन्होंने आश्वासन दिया है अब आगे देखो क्या होता है।
गंगा नदी भी उफान पर है और इसका जलस्तर बढ़ने से मणिकर्णिका घाट पर अब शवदाह संस्कार में दिक्कत हो रही है। वाराणसी में तटवर्ती इलाकों में गंगा का पानी घुसने के बाद पलायन का दौर जारी है। राजघाट स्थित नमो घाट जिसको अभी हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने बनवाया था वो तो पूरी तरह से डूब गया है।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की कुछ तस्वीरें यहां देखी जा सकती हैं।
हालांकि, बाढ़ को देखते हुए जिला प्रशासन भी अलर्ट मोड पर आ गया है। आपात स्थिति से निपटने के लिए 40 मेडिकल टीम का गठन हो चुका है। बाढ़ राहत शिविरों का भी टीमें जायजा ले रही हैं।
CJP की शमा बानो ने यहां घाट के आसपास रहने वाले व अन्य लोगों से इस बाढ़ से होने वाली परेशानियों के बारे में जानकारी ली। पुराना पुल सराय मोहल्ला की रहने वाली एक युवती, जो अपने नौ (माता-पिता, दो भाई और चार बहनों) के परिवार के साथ राहत शिविर में आई है, कहती है, “मेरे दो भाई मेरे पिता के साथ दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। पांच बहनों में से और मैं एक शिक्षक के रूप में काम करता हूं। मेरी बहनें बहुत छोटी हैं और अभी भी पढ़ रही हैं।” उन्होंने बताया कि बाढ़ से उन्हें हर साल परेशानी होती है क्योंकि उनके घर में पानी भर जाता है। उन्होंने बताया, “राहत शिविर में लेखपाल ने व्यवस्था की है। हमें सुबह चाय-बिस्किट, दोपहर में खिचड़ी और रात के खाने में पूरी और सब्जी मिलती है।”
शमा बानो ने इसी मोहल्ले में रहने वाली एक अन्य महिला से बात की तो उन्होंने बताया, “मुझे याद है कि कैसे 2012 में घर में पानी भर गया था और कैसे हम किसी तरह बच्चों के साथ समय पर निकल पाए। इस बार भी घर में पानी भर गया।” वे किराए के मकान में रहती हैं। विडंबना यह है कि उनका मकान मालिक बाढ़ के समय का भी किराया नहीं छोड़ता। उन्होंने बताया, “हमारा परिवार किराये के मकान में रहता है। हम एक हजार रुपये किराया देते हैं, लेकिन बाढ़ के बावजूद मकान मालिक ने हमारा किराया माफ नहीं किया है।” उन्होंने बताया कि लोग सरकारी योजनाओं को लेकर आते हैं लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता। उन्होंने बताया, “एक बार मकान का फॉर्म भरने के लिए कहा गया था लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।”
राहत शिविरों में लोगों की शमा बानो द्वारा ली गई कुछ तस्वीरें, और बाढ़ के प्रभाव की कुछ और तस्वीरें, यहां देखी जा सकती हैं।
इसी मोहल्ले में रहने वाले एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि वे भी किराए के मकान में रहते हैं जो कि 2000 रुपये मासिक है। उन्होंने कहा कि वे बस यही मांग करते हैं कि उन्हें आवास की व्यवस्था हो जाए तो वे आसानी से जीवनयापन कर सकेंगे।
सरकारी स्कूल में शरण लिए एक अन्य महिला मुन्नी देवी ने भी यही परेशानी व्यक्त की कि जब वे बाढ़ के बाद रहने के लिए किराए के आवास पर जाएंगी तो उनका मकान मालिक पूरा किराया ले लेगा। हालांकि वे अभी कोई काम भी नहीं कर पा रही हैं। लेकिन किराया भरना उनकी मजबूरी है।
एक मजदूरी करने वाले परिवार से आने वाली अन्य महिला ने भी लगभग यही परेशानी व्यक्त की। उनका कहना है कि उनका अधिकांश सामान भी उनके घर में ही रह गया है। हालांकि, ये भी मकान मालिक की संवेदनहीनता का सामना करती हैं। जब बाढ़ के बाद वे घर वापस जाएंगी तो बाहर रहने के दौरान का किराया भी उन्हें भरना पड़ेगा।
एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि वे हर साल बाढ़ का सामना करते हैं। हर साल बाढ़ राहत के फॉर्म भरे जाते हैं लेकिन कोई राहत नहीं मिलती। वे भी किराए के मकान में रहते हैं। ये सभी लोग अभी सरकारी स्कूल में रह रहे हैं।
फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें
एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।
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