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संसद में पेश होंगे किसान कल्याण से सम्बंधित विधेयक

New MSP for Kharif crops

देशभर में ऋण तथा अन्य आर्थिक दुर्दशाओं से ग्रस्त किसानों के लिए एक अच्छी खबर है. कृषि कल्याण हेतु प्रस्तावित दो प्रमुख विधेयकों, संपूर्ण कर्ज़ा मुक्ति विधेयक 2018 एवं कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी विधेयक 2018, को अब 21 राजनीतिक दलों का समर्थन मिल गया है. यह भारत के कृषि समुदाय के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है.

25 अप्रैल को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, जिसकी छत्रछाया में कई और किसान संगठन है, ने विचार-विमर्श करने और दो विधेयकों को अंतिम रूप देने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों से भेंट की. इस बैठक में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से शरद पवार, कांग्रेस पार्टी से दीपेंद्र हुड्डा सहित राष्ट्रीय जनता दल, शिव सेना, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) के सदस्य शामिल हुए. इसके अलावा कुछ और पार्टियों जैसे तेलेगु देशम पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी ने लिखित तौर पर अपना समर्थन दिया. ये दोनों विधेयक निजी सदस्यों के विधेयक के रूप में पारित किये जायेंगे.

सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने हमेशा किसानों के अधिकारों और भारत के कृषि समुदायों के संघर्ष का समर्थन किया है, और ये विधेयक इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. किसानों और आदिवासियों के लिए CJP द्वारा उठाए गए कदमों का समर्थन करने के लिए योगदान दीजिए.

संगठित हो कट उभरे किसान

जून 2017 में, मध्य प्रदेश में  किसानों के आन्दोलन के दौरान 6 किसानों को पुलिस गोलीबारी में मार दिया गया. इसी के बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) का गठन किया गया. जिसका मकसद था दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटना- पहला ऋण माफ़ी और दूसरा लाभकारी मूल्य की मांग. आज AIKSCC की छत्रछाया में 190 किसान संगठनों का समूह है, साथ ही अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) इसका महत्वपूर्ण अंग है. नवम्बर 2017 में दिल्ली में दो दिन की किसान संसद और महिला किसान संसद का आयोजन किया गया था, जिसमें देश भर से आये सैकड़ों हज़ारों किसानों ने हिस्सा लिया. उन्होंने संपूर्ण कर्ज़ा मुक्ति विधेयक एवं कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी विधेयक पारित किया जिसका मकसद आगे चलकर संसद में पेश करने का है.

AIKSCC के संयोजक वी एम सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, ”दो किसान मुक्ति विधेयक प्राइवेट मेम्बर बिल की तरह स्वाभिमान पक्ष महाराष्ट्र से संसद राजू शेट्टी और CPI (M) से राज्य सभा सांसद के के राजेश द्वारा  लाये जायेगें. देश भर से किसान लोक सभा और राज्य सभा के अध्यक्षों को पत्र भेजेंगे जिसमें वह यह  बतायेंगें कि किसान मुक्ति बिल उनके लिए किस तरह ज़रूरी हैं.“

किसान लॉन्ग मार्च

दिवंगत पूर्व प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के दिए नारे ‘जय जवान, जय किसान’ के लगभग 50 साल बाद, भारतीय किसान आज भी उनके हाथों बुरे हालात से जूझ रहा है, जो उनका भला कर सकते थे. मार्च 2018 में महाराष्ट्र के 30000 हज़ार से ज्यादा किसान और आदिवासियों ने नाशिक से एक लॉन्ग मार्च शुरू किया और 6 दिन का समय तय करके मुंबई में शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया और साथ ही सुनिश्चित किया कि उनकी मांगों को सुना जाये जिनमें बिना शर्त ऋण माफ़ी, बुलेट ट्रेनों जैसे बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए कृषि भूमि के बलपूर्वक अधिग्रहण को समाप्त करना, और उन लोगों के लिए मुआवज़े की व्यवस्था करना जिनकी फसल ओला-वृष्टि और कीटों से प्रभावित हुई थी, भी शामिल थीं.

किसान अपने आदिवासी भाईयों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर लॉन्ग मार्च में साथ चले,जिनकी मांग थी कि जिस ज़मीन को वे सालों से जोत रहे हैं,उसपर उनका हक होना चाहिए और वन अधिकार अधिनियम को पूर्णतः लागू किया जाना चाहिए. महाराष्ट्र सरकार ने सारी शर्तों को लिखित तौर पर मान लिया है. मार्च के महीने में ही ओडिशा के किसानों ने भी सत्याग्रह का रास्ता अपनाकर मासिक पेंशन समेत अपनी और मांगों को मनवाया है.

भारतीय किसानों के संघर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होने के बावजूद,अपनी जीविका चलाने के लिए भारतीय किसानों को कई संघर्षों का सामना करना पड़ता है. कृषि ऋण को प्रभावित करने वाली व्यापक ऋणात्मकता के साथ वे ऐसे कई संघर्ष में उलझ  गए हैं कि वे पुनर्भुगतान की उम्मीद नहीं कर सकते हैं और सरकारी ऋण छूट योजनाओं से बहुत कम राहत मिल रही है. इसके कारण किसान आत्महत्या एक महामारी का रूप धारण कर चुकी है. मई 2017 में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2013 से कृषि क्षेत्र में 12,000 से ज्यादा आत्महत्या की सूचना मिली है.

किसान, जो प्रतिदिन कमरतोड़ श्रम करता है,  उसे अन्य स्वास्थ्य चिंताओं का भी सामना करना पड़ता है. 2017 के उत्तरार्ध में, पूर्वी महाराष्ट्र में कीटनाशकों से संबंधित 18 किसानों की मौत हुई, जिसमें कई जिलों में करीब 800 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया. बाद में यह पाया गया कि जो लोग अत्यधिक जहरीले कीटनाशकों के संपर्क में आने के बाद मर गए थे, उन कीटनाशकों को स्थानीय बाजार में कभी बेचा ही नहीं जाना चाहिए था. यह दर्शाता है कि नियामक प्राधिकरण या तो अक्षम या इतने जटिल हैं कि इन बिना लाइसेंस के  कीटनाशकों की उपलब्धता को रोक नहीं पा रहे हैं.

किसान अपनी फसल के लिए उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)के लिए भी आंदोलन कर रहे हैं, जो उनकी ज़रूरतों को पूरी करने और गरिमा के साथ जीने के लायक बनाएगा. वे जबरन जमीन अधिग्रहण के शिकार भी हो जाते हैं. हाल ही में, गुजरात के 5,000 से अधिक किसानों और उनके परिवारों ने अधिकारियों को पत्र लिखा था कि वे जिन भूमियों पर खेती कर रहे हैं, उन्हें उस पर से डरा-धमका कर राज्य शक्ति उपयोगिता के लिए जबरन हटा दिया जाएगा.

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पहले ही ज्ञात हो चुका है  और 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण में पाया गया कि इसके परिणामस्वरूप किसानों की आय में उल्लेखनीय कमी हो सकती है. सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले वर्षों में आय में औसतन 12% की कमी हो सकती है, यदि किसान खुद का अनुकूलन करने में असमर्थ रहे, या यदि नीति में परिवर्तन, जैसे कि सिंचाई से संबंधित, नहीं किए जाते हैं. सभी कारकों पर विचार करते हुए, बिना सिंचाई के क्षेत्रों में किसानों की आय 15% से 18% या यहां तक ​​कि 20% -25% तक गिर सकती है. कृषि के लिए भारत का सिंचाई बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है, किसान जिस प्रकार  महाराष्ट्र जैसे राज्यों में लगातार सूखे के कारण पानी की कमी के साथ संघर्ष कर रहे हैं, और साथ ही पानी की भारी चोरी भी हो रही है.

 

अनुवाद सौजन्य – सदफ़ जाफ़र

फीचर छवि अमीर रिज़वी द्वारा

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