वर्षों के डर, अनिश्चितता और नौकरशाही के संघर्ष के बाद असम के बोंगाईगांव जिले की एक बुजुर्ग बंगाली भाषी मुस्लिम महिला इलाचन बीबी को आखिरकार जन्म के आधार पर भारतीय नागरिक घोषित कर दिया गया है। यह घोषणा 22 सितंबर, 2025 को विदेशी न्यायाधिकरण संख्या 1, बोंगाईगांव द्वारा एक तर्कसंगत आदेश के जरिए की गई, जिससे उस महिला को राहत और सम्मान मिला, जो वर्षों से नागरिकता-विहीन होने के डर में जी रही थी।
यह जीत केवल उनकी नहीं है। यह सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) के लिए भी एक और मील का पत्थर है, जिनके अथक कानूनी और अर्ध-कानूनी हस्तक्षेप ने सुनिश्चित किया कि असम में नागरिकता के एक और गलत मामले में सच्चाई और न्याय की जीत हो।
CJP की समर्पित असम टीम, कम्यूनिटी वॉलंटियर्स, डिस्ट्रिक्ट वॉलंटियर मोटिवेटर्स और वकीलों की टीम असम के क़रीब 24 ज़िलों में नागरिकता संकट से जूझ रहे लोगों को क़ानूनी सहयोग, काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक मदद के लिए लगातार काम कर रही है. 2017 से 19 के बीच हमारी अगुवाई में अभी तक क़रीब 12,00,000 लोगों ने सफलतापूर्वक NRC फ़ार्म भरे हैं. हम ज़िला स्तर पर भी प्रति माह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के केस लड़ते हैं और हर साल क़रीब 20 ऐसे मामलों में कामयाबी हासिल करते हैं. हमारे अनवरत प्रयासों की बदौलत अनेकों लोगों की भारतीय नागरिकता बहाल हुई है. ज़मीनी स्तर के ये आंकड़े CJP द्वारा संवैधानिक अदालतों में सशक्त कार्रवाई और मज़बूत पैरवी सुनिश्चित करते हैं. आपका सहयोग हमें इस महत्वपूर्ण काम को जारी रखने में मदद करता है. समान अधिकारों के लिए हमारे साथ खड़े हों. #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।
पीड़ा और धैर्य से गढ़ी एक ज़िंदगी
तत्कालीन बिजनी पुलिस स्टेशन (अब मानिकपुर, बोंगाईगांव जिला) के अंतर्गत सलमारा गांव (लुंगझार) में लगभग 1960 में जन्मी इलाचन के शुरुआती साल गांव में तब तक बीते जब तक कि विनाशकारी बाढ़ ने उनके परिवार का घर बहा नहीं दिया। जमीन और आजीविका के नुकसान के दशकों बाद एक और बड़ा आघात तब लगा जब विदेशी न्यायाधिकरण से एक नोटिस मिला, जिसमें आरोप लगाया गया कि वह विदेशी हैं और 25 मार्च, 1971 के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से असम में आई थीं।
इलाचन के लिए यह आरोप उनकी पहचान पर ही हमला था। वह तालेब अली (जिन्हें तालेब अली शेख/तालेफ अली के नाम से भी जाना जाता है) और कोरिमन बीबी की बेटी हैं — दोनों भारतीय नागरिक थे, जिनके नाम 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और 1966 व 1971 की मतदाता सूचियों में दर्ज थे, यानी 1971 की कट-ऑफ तारीख से पहले।
1973 में बारबखरा गांव के एक किसान खबरुद्दीन एसके से उनकी शादी ने असम में उनके जीवन को और स्थायित्व दिया। फिर भी, नौकरशाही के संदेह ने उनके बुढ़ापे को अपनेपन की लड़ाई में बदल दिया।
सीजेपी का हस्तक्षेप: धीरे-धीरे, ठोस आधार पर गढ़ा गया मामला
नोटिस मिलने के बाद इलाचन ने सीजेपी का सहारा लिया — जो असम में गलत तरीके से “विदेशी” घोषित किए गए लोगों को लगातार कानूनी सहायता देने वाले कुछ संगठनों में से एक है। सीजेपी की असम राज्य प्रभारी नंदा घोष और कानूनी टीम के अधिवक्ता दीवान अब्दुर रहीम ने उनके बचाव की कमान संभाली। पैरालीगल और फील्ड वॉलंटियर्स की मदद से उन्होंने सावधानीपूर्वक उनके दस्तावेजी रिकॉर्ड तैयार किए — एक बेहद मेहनतभरा कार्य जिसमें पुराने रिकॉर्ड जुटाना, वर्तनी की जांच करना और पीढ़ियों के बीच महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करना शामिल था, जो अक्सर नागरिकता मामलों में निर्णायक भूमिका निभाता है।
ट्रिब्यूनल के समक्ष, सीजेपी ने इलाचन के भारतीय वंश और असम में निरंतर निवास को साबित करने वाले सोलह दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, जिनमें शामिल थे:
- उनके पिता तालेब अली की 1951 की एनआरसी प्रविष्टि;
● 1966, 1971, 1985, 1989, 1997, 2006, 2015, 2020, 2022 और 2023 की मतदाता सूचियाँ, जो परिवार की निरंतर मौजूदगी दर्शाती हैं;
● लुंगझार में उनके पिता के नाम पर पट्टा संख्या 63 के तहत भूमि अभिलेख;
● गांव पंचायत से जारी जन्म और विवाह प्रमाण पत्र।
पांच गवाहों ने उनके समर्थन में गवाही दी — जिनमें उनका भाई कासिम अली, ग्राम पंचायत सचिव मृणेंद्र शर्मा, एक राजस्व मंडल अधिकारी और उनके पति शामिल थे। प्रत्येक गवाही ने उनके भारतीय नागरिक तालेब अली और कोरिमन बीबी की जैविक पुत्री होने के दावे की पुष्टि की।
इलाचन बीबी अपने पति के साथ, विदेशियों के न्यायाधिकरण (Foreigners’ Tribunal) के आदेश को थामे हुए
ट्रिब्यूनल का निष्कर्ष: नागरिकता संदेह से परे साबित
सदस्य श्री दुलाल साहा की अध्यक्षता में न्यायाधिकरण ने साक्ष्यों की गहन जांच की और पाया कि इलाचन ने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 9 के तहत अपने साक्ष्य को पर्याप्त रूप से साबित कर दिया है।
1966 और 1971 की मतदाता सूचियों व मौखिक साक्ष्यों के आधार पर न्यायाधिकरण ने कहा:
“उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी ने सफलतापूर्वक यह स्थापित किया है कि वह तालेब अली की पुत्री हैं। अतः मुद्दा संख्या (ii) प्रतिवादी के पक्ष में तय किया जाता है।”
इसके अलावा, प्रस्तुत मतदाता सूचियाँ यह दर्शाती हैं कि तालेफ अली और करीमन बीबी का नाम 1 जनवरी 1966 से पहले भारतीय भूमि पर मौजूद था, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे भारतीय नागरिक थे। अतः मुद्दा संख्या (i) भी प्रतिवादी के पक्ष में तय किया गया।
न्यायाधिकरण ने आगे कहा कि इलाचन के दस्तावेज विधिवत प्रमाणित थे — जिनमें उनके पैन कार्ड का आयकर विभाग द्वारा सत्यापन और स्थानीय अधिकारियों की गवाही भी शामिल थी।
22 सितंबर, 2025 को न्यायाधिकरण ने घोषणा की कि इलाचन बीबी विदेशी नहीं, बल्कि जन्म से भारत की नागरिक हैं, और पुलिस अधीक्षक (सीमा) व जिला आयुक्त, बोंगाईगांव को इस निष्कर्ष से अवगत कराने का निर्देश दिया।
राहत की सांस और सुकून का पल
8 नवंबर, 2025 को सीजेपी की नंदा घोष और अधिवक्ता दीवान अब्दुर रहीम इलाचन के बारबखरा गांव स्थित साधारण घर पहुँचे और फैसले की प्रमाणित प्रति उन्हें सौंपी। अपनी नागरिकता बहाल करने वाला दस्तावेज हाथ में लिए, इलाचन राहत की सांस ले रही थीं — आँखों में आँसू और चेहरे पर सुकून। उनके पति ने कहा कि “जब कोई गरीबों के साथ खड़ा नहीं हुआ, तब सीजेपी हमारे साथ खड़ी रही।”
सीजेपी की असम राज्य प्रभारी नंदा घोष ने कहा, “बाढ़ ने उनका घर छीन लिया था, फिर राज्य ने उनकी नागरिकता छीनने की कोशिश की। आज न्याय ने उन्हें दोनों लौटा दिए हैं।” उन्होंने आगे कहा, “ऐसा हर फैसला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं होता — यह संविधान और हर उस हाशिए पर पड़े भारतीय की जीत है, जिसकी पहचान पर सवाल उठाया गया है।”
इलाचन बीबी और उनके पति, अपने घर के बाहर CJP असम टीम के साथ
न्याय के लिए सीजेपी का निरंतर संघर्ष
इलाचन बीबी का मामला असम में सीजेपी द्वारा सहायता प्राप्त जीतों की बढ़ती सूची में जुड़ गया है, जहाँ वर्षों के संघर्ष के बाद सैकड़ों गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों को भारतीय घोषित किया गया है। सीजेपी का पैरालीगल नेटवर्क पूरे राज्य में काम कर रहा है — गलत विदेशी संदर्भों के पीड़ितों की पहचान कर रहा है, कानूनी सहायता दे रहा है और नौकरशाही की विरोधी मानसिकता व डर से भरे माहौल में आवश्यक दस्तावेज़ों को सुरक्षित रख रहा है।
इलाचन की जीत सिर्फ एक व्यक्ति की जीत नहीं — यह इस बात की याद दिलाती है कि प्रशासनिक गलती और प्रणालीगत पूर्वाग्रह के बावजूद, सत्य, दृढ़ता और एकजुटता की जीत संभव है।
पूरा आदेश यहाँ पढ़ा जा सकता है।
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