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गरीब आदिवासियों को अपराधियों की तरह शिकार बनाया गया

आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले फ़ादर स्टेन स्वामी का 5 जुलाई को देहांत हो गया. उन्होंने और बगाइचा रिसर्च टीम ने एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें पीएम एंटोनी, जितिन मरांडी, दामोदर तुरी, रेनी अब्राहम, मारियानुस मिंज, सुधीर केरकेट्टा और एक्सवियर सोरेंग शामिल थे. पेश रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि क्यों एक बड़ी संख्या में आदिवासी झारखंड में बंदी बनाए गए हैं.

इस अध्ययन के मुताबिक़– ‘बड़ी संख्या में आदिवासी, दलित और दूसरी पिछड़ी जातियां (जिन्हें आदिवासी और मूलनिवासी कहा जाता है) अनेक झूठे मामलों में फंसी हुई हैं. ख़ास तौर से ऐसा तब होता है जब वो उन संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकारों की बात करते हैं जिनका ख़ुद को ‘उच्च’ जाति या ‘वर्ग’ का क़रार देने वाले लोगों द्वारा उल्लंघन किया जाता है और राज्यव्यवस्था उन लोगों के स्वार्थ की पूर्ति करती है जो भारतीय समाज में उच्च बनाम नीच जाति की बेहद पूर्वाग्रहग्रसित और बनावटी धारणाओं का अनुसरण करते हैं.’

इस अध्ययन में कहा गया है कि – ‘ये तर्क झारखंड की जेलों में बेहद ख़राब प्रतिक्रियाओं पर चर्चा से लेकर राइट टू इंफ़ार्मेशन एक्ट 2005 के तहत दायर याचिकाओं से पुष्ट किया गया है. ये झारखंड की 18 ज़िलों से, 102 कथित नक्सलियों के प्रासंगिक अंडर ट्रॉयल डाटा और झारखंड की जेलों में अंडर ट्रॉयल डिटेनीज़ और अनेक कथित नक्सलियों के व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है.’

इस अध्ययन ने दावा किया है कि – ‘क़रीब 46 % अंडरट्रॉयल स्टडी 29-40 के आयु वर्ग से संबंधित है और शेष 22 % 18-28 के आयुवर्ग से संबंधित है. इनमें से 69 % आदिवासी और अनुसूचित जनजातियों के लोगों को आरोपी करार दिया गया है. जबकि 42 % सरना आदिवासी और 31 % हिंदू और 25 % ईसाई और 2 % मुसलमान हैं.’

इससे बढ़कर – ‘गिरफ़्तारी की लोकेशन को लेकर डाटा कहता है कि इसमें से 57 % लोगों को उनके घरों से गिरफ़्तार किया गया और 30 % को आसपास के क़स्बों से या यात्रा को दौरान गिरफ़्तार किया गया है. 8 % ने पुलिस द्वारा चार्जशीट में दर्ज होने की सूचना मिलने के बाद कोर्ट में सरेंडर कर दिया. इनमें से 5 % को सीधा गिरफ़्तारी के लिए पुलिस स्टेशन से समन जारी किया गया.’

पूरा अध्ययन यहां पढ़ा जा सकता है :