संवैधानिक मूल्यों और पत्रकारिता की नैतिकता को बनाए रखने की टेलीविज़न खबरों की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए समाचार प्रसारण और डिजिटल मानक प्राधिकरण (एनबीडीएसए) ने 15 अक्टूबर, 2024 को “कॉफ़ी पर कुरुक्षेत्र” के प्रसारण के लिए इंडिया टीवी के खिलाफ कड़े शब्दों में आदेश दिया है। 25 सितंबर को पारित यह आदेश सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) द्वारा दायर एक विस्तृत शिकायत के जवाब में आया है।
यह न केवल CJP की लगातार मीडिया निगरानी की कोशिशों की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी रेखांकित करता है कि अगर प्राइम-टाइम न्यूज़ डिबेट्स में निष्पक्षता और संतुलन न हो, तो वे समाज में सांप्रदायिक नफरत फैला सकती हैं।
सीजेपी हेट स्पीच के उदाहरणों को खोजने और प्रकाश में लाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि इन विषैले विचारों का प्रचार करने वाले कट्टरपंथियों को बेनकाब किया जा सके और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जा सके। हेट स्पीच के खिलाफ हमारे अभियान के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया सदस्य बनें। हमारी पहल का समर्थन करने के लिए, कृपया अभी दान करें!
बहराइच हिंसा की चिंगारी और मीडिया का खेल
यह मामला 13 अक्टूबर, 2024 की घटनाओं से जुड़ा है, जब बहराइच के महाराजगंज इलाके में दुर्गा पूजा विसर्जन जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी। एक मस्जिद के पास तेज़ गाना बजाने के कारण झड़पें हुईं, गोलीबारी हुई और 22 वर्षीय राम गोपाल मिश्रा की मौत हो गई, जिसके बाद पूरे इलाके में जवाबी हिंसा फैल गई। दुकानों, घरों, अस्पतालों और वाहनों में तोड़फोड़ की गई या आग लगा दी गई।
इसके ठीक दो दिन बाद, इंडिया टीवी ने इस घटना पर चर्चा के लिए “कॉफ़ी पर कुरुक्षेत्र” प्रसारित किया। लेकिन गंभीर रिपोर्टिंग के बजाय, इस शो ने इस त्रासदी को सनसनीखेज बना दिया, मुसलमानों को बदनाम किया और हिंसा को एक बड़े “गृहयुद्ध” के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया, जिसकी कथित तैयारी मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ की जा रही थी।
इस एपिसोड की मेजबानी सौरव शर्मा ने की थी, जिसमें प्रो. संगीत रागी, प्रदीप सिंह और शांतनु गुप्ता जैसे पैनलिस्ट शामिल थे—जिन्होंने इस मंच का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ व्यापक और भड़काऊ दावे करने के लिए किया।
पूरी शिकायत यहां पढ़ी जा सकती है।
शिकायत
21 अक्टूबर, 2024 को, सीजेपी ने एक शिकायत दर्ज की जिसे बाद में 6 नवंबर, 2024 को आगे बढ़ाया गया। इसमें शो के खतरनाक नैरेटिव और प्रसारण मानकों के उल्लंघन को रेखांकित किया गया।
सीजेपी ने कई परेशान करने वाले पहलुओं की ओर इशारा किया:
● भड़काऊ भाषा और विजुअल्स: एंकर ने शो की शुरुआत “पत्थरबाज सेना”, “कट्टरपंथी मुसलमान”, “गृहयुद्ध” और “षड्यंत्र” जैसे शब्दों से की। आक्रामक दृश्यों और पृष्ठभूमि संगीत ने भय फैलाने वाले नैरेटिव को और बढ़ा दिया।
● मुसलमानों का अपमान: प्रसारण में मुसलमानों को लगातार आक्रामक और “बाहरी” बताया गया, यहां तक कि विभाजन का हवाला देकर कहा गया कि हिंदुओं को ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों के कारण ही कष्ट झेलने पड़े।
● धार्मिक प्रथाओं का दुरुपयोग: अज़ान को विघटनकारी बताया गया; पैनलिस्टों ने सवाल किया कि हिंदुओं को इसे क्यों बर्दाश्त करना चाहिए। मुस्लिम त्योहारों को हिंदू जीवनशैली के लिए खतरा बताया गया।
● ऐतिहासिक हस्तियों के विचारों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया: गांधी और अंबेडकर के शब्दों को गलत तरीके से उद्धृत किया गया या संदर्भ से बाहर निकालकर मुसलमानों के खिलाफ तर्क के रूप में इस्तेमाल किया गया।
● कोई जवाबी पक्ष नहीं: किसी भी मुस्लिम वक्ता या तटस्थ व्यक्ति को आमंत्रित नहीं किया गया। चर्चा पूरी तरह से एकतरफ़ा रही, जिसमें मेजबान ने सांप्रदायिक लहजे का मौन समर्थन किया।
● खतरनाक आह्वान: मेहमानों ने खुले तौर पर सुझाव दिया कि हिंदुओं को अपनी रक्षा के लिए “लाठी लेकर सामने आना चाहिए”, और बहस “देवताओं बनाम राक्षसों” जैसे रूपकों तक पहुंच गई।
सीजेपी ने ज़ोर देकर कहा कि बिना किसी सत्यापित पुलिस जांच या निष्पक्ष रिपोर्टिंग के ऐसे कार्यक्रम का प्रसारण दुष्प्रचार फैलाने, शत्रुता को बढ़ावा देने और पत्रकारिता की तटस्थता को त्यागने के समान है।
प्रसारक का बचाव: प्रेस की स्वतंत्रता या जिम्मेदारी से भागना?
इंडिया टीवी ने 5 नवंबर, 2024 को दिए अपने जवाब में कहा:
● शो लाइव था, बिना स्क्रिप्ट के था और स्वतंत्र बहस पर आधारित था; अतः जिम्मेदारी मेहमानों की थी।
● चैनल ने मेहमानों के विचारों का समर्थन नहीं किया, जो “भिन्न दृष्टिकोण” थे।
● अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता विवादास्पद विचारों के प्रसारण की रक्षा करती है।
● सीजेपी की शिकायत में पैनलिस्टों के “चुनिंदा उद्धरण” दिए गए थे।
इंडिया टीवी ने यह भी कहा कि होस्ट ने गंभीर सवाल पूछे — जैसे कि क्या राम गोपाल द्वारा झंडा हटाना उनकी हत्या को उचित ठहराता है — और दंगों से ऐतिहासिक समानताएं प्रस्तुत करना वैध था।
सुनवाई: सीजेपी बनाम इंडिया टीवी
एनबीडीएसए ने 29 मई, 2025 को मामले की सुनवाई की। सीजेपी ने तर्क दिया कि शो, उस समय प्रसारित हुआ जब पुलिस की कोई आधिकारिक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थी, और उसने “हम बनाम वे” का द्वंद्व पैदा कर समाज में नफरत को भड़काया।
प्रसारक ने कहा कि लोकतंत्र में विवादास्पद विचारों को सेंसर नहीं किया जा सकता और शिकायतकर्ता तथ्यात्मक रूप से गलत उद्धरण नहीं दिखा सका।
एनबीडीएसए के निष्कर्ष: एकतरफा, सांप्रदायिक नैरेटिव
1. जानबूझकर किया गया विषय और पैनल चयन
प्रसारक ने एक विभाजनकारी विषय चुना और केवल उसी नैरेटिव के समर्थन में वक्ताओं को बुलाया।
आदेश में कहा गया:
“प्राधिकरण ने पाया कि एक विशेष विषय चुना गया था और उसके बाद केवल उन्हीं व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया जिनके उस विषय के समर्थन में दृढ़ विचार थे।”
2. तटस्थता का उल्लंघन
आदेश में कहा गया है:
“प्रसारक ने उन वक्ताओं को शामिल नहीं किया जो तस्वीर का दूसरा पक्ष रख सकते थे; इस प्रकार चर्चा असंतुलित और एकतरफा रही। यह आचार संहिता के तहत तटस्थता के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन है।”
आदेश: इंडिया टीवी के खिलाफ कड़े निर्देश
● कंटेंट हटाना: इंडिया टीवी को वेबसाइट, यूट्यूब और सभी लिंक से विवादित प्रसारण हटाना होगा और 7 दिनों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी।
● संस्थागत प्रसार: आदेश सभी एनबीडीए सदस्यों, संपादकों और कानूनी प्रमुखों तक भेजा जाएगा।
● सार्वजनिक रिकॉर्ड: आदेश एनबीडीएसए वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगा, वार्षिक रिपोर्ट में शामिल होगा और मीडिया को जारी किया जाएगा।
एनबीडीएसए ने स्पष्ट किया कि उसके निष्कर्ष केवल प्रसारण मानकों से संबंधित हैं और किसी दीवानी या आपराधिक दायित्व को निर्धारित नहीं करते।
यह एक जीत क्यों है
● एकतरफा नैरेटिव की पहचान: आदेश दिखाता है कि संतुलित आवाजों को दरकिनार कर कैसे “बहस” को सांप्रदायिक एजेंडे का उपकरण बनाया जा सकता है।
● एंकर की जवाबदेही: होस्ट को जिम्मेदार ठहराकर एनबीडीएसए ने मिसाल कायम की कि एंकर मेहमानों की राय के पीछे नहीं छिप सकते।
● कंटेंट हटाने का आदेश: यह केवल चेतावनी नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई है — जो मीडिया में जवाबदेही को मजबूत बनाती है।
● नागरिक समाज की भूमिका: सीजेपी की सतर्क निगरानी और साक्ष्य-आधारित शिकायत ने दिखाया कि नागरिक समाज शक्तिशाली प्रसारकों को भी जवाबदेह ठहरा सकता है।
निष्कर्ष
एनबीडीएसए का निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि प्रेस की स्वतंत्रता अल्पसंख्यकों को बदनाम करने या सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का लाइसेंस नहीं हो सकती।
सीजेपी के लिए, यह जीत साक्ष्य, सतर्कता और धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता की शक्ति को दर्शाती है।
यह आदेश साबित करता है कि अगर दृढ़ता से कार्रवाई की जाए तो संस्थाएं अब भी नफरत के बजाय जवाबदेही और न्याय की दिशा में खड़ी हो सकती हैं।
पूरा आदेश यहां पढ़ा जा सकता है।