नवंबर 2023 में, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल से नोटिस मिलने के तीन साल और आठ महीने बाद, सेजे बाला घोष, एक स्वतंत्रता सेनानी की बेटी, को आखिरकार असम में भारतीय घोषित किया गया!
मार्च 2020 की बात है, असम के उत्तरी बोंगाईगांव की 73 वर्षीय निवासी सेजे बाला घोष को ‘’विदेशी घोषित नोटिस’’ थमाया गया और मांग की गई कि वह खुद को फोरेनर ट्रिब्यूनल (एफटी) के समक्ष प्रस्तुत करें यह अलग बात है कि उनका नाम 31 अगस्त, 2019 को जारी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम ड्राफ्ट सूची में शामिल था।
21 नवंबर को, एफटी से आदेश प्राप्त करने के बाद उनके चेहरे पर मुस्कान थी और टीम सीजेपी के साथ घर पहुँचने पर पुरानी यादों को लौटने का समय था। उन्होंने कहा, “मेरी माँ ने युद्ध के समय इंडियन डिफेन्स फंड में 50 रुपये का योगदान किया था। उस समय, 50 रुपये बड़ी रकम हुआ करती थी। हम एक रुपये में चार किलो चावल खरीद सकते थे। हमारे पिता स्थानीय दुकान पर घरेलू सामान खरीदने भेजते थे। हम 250 मिलीलीटर तेल एक आने में खरीद सकते थे।”
हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।
पुरानी यादों को ताजा करते-करते अचानक वह गंभीर हो गईं और उनके होंठ कांपने लगे, उन्होंने भावुक होते हुए बताया, “73 वर्ष की उम्र में, इस सरकार ने मुझे अदालत जाने को मजबूर किया है। शायद यह मेरी नियति थी। लेकिन भगवान उन्हें छोड़ेगा नहीं। मैं और कुछ नहीं कहूँगी, भगवान सबकुछ देख रहा है। मैंने बहुत तकलीफ झेली, इस मामले के कारण हुई प्रताड़ना के कारण मेरा हाथ व पैर फ्रैक्चर हो गए।”
उन्होंने कहा, “यह काफी नहीं है कि मुझे भारतीय घोषित किया गया है। इसके लिए मुझे अदालत जाना पड़ा, यह मेरे लिए शर्मनाक है और मैं यह कभी नहीं भूलूँगी क्योंकि मैं बांग्लादेशी नहीं हूँ।”
73 वर्षीय सेजे बाला घोष की विरासत दिलचस्प और शानदार है।
उनके पिता लेफ्टिनेंट दिगेंद्र चंद्र घोष क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्र शेखर आजाद के निकट सहयोगी थे।
इस शानदार विरासत और परवरिश पर उन्हें गर्व था और वह सिर ऊंचा कर चलती थीं। अचानक उन्हें “बांग्लादेशी” करार देने वाला “नोटिस” आया और सेजे बाला शर्मिंदगी महसूस करने लगीं और अपनी “भारतीय नागरिकता” “साबित करने” पर मजबूर हुईं। मार्च 2020 से नवंबर 2023 तक, सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एण्ड पीस के वॉलंटियर्स और वकीलों ने उनके साथ कार्य किया। और, आखिरकार उन्हें भारतीय घोषित किया गया। 21 नवंबर को, हमें उस लिखित आदेश की प्रति मिली जो नवंबर के शुरुआत में मौखिक रूप से आ चुका था।
सीजेपी टीम की तरफ से असम प्रदेश प्रभारी नंदा घोष (इस लेख के लेखक), कानूनी टीम सदस्य और वकील दीवान अब्दुर रहीम और उनके कनिष्ठ वकील सहिदुर रहमान ने उन्हें निर्णय की प्रति दी।
सीजेपी, जो असम में कार्य के अपने छठे वर्ष में है, ने दर्जनों लोगों को असम में अपना नागरिकता दर्ज प्राप्त करने अथवा बनाए रखने में मदद की है। और इसके अलावा गौहाटी उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में सामूहिक मामलों में संलिप्त है।
सेजे बाला के मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि:
सेजे बाला के पिता दिगेंद्र घोष तब पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले क्षेत्र के मेमोनशिंग जिले के शेरपुर टाउन से असम आए थे। दिनांक 7 मार्च 1951 के शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र के अनुसार दिगेंद्र चंद्र घोष, पद्मा के पुत्र, अपने चार अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ शरणार्थी के रूप में पंजीकृत हैं। शरणार्थी प्रमाणपत्र पर तत्कालीन गोलपाड़ा जिले के उपायुक्त के हस्ताक्षर हैं और आधिकारिक मुहर लगी है।
परिवार ने शरणार्थी के रूप में पंजीकरण करवाया और बोंगाईगांव में रहने लगे। उनके नाम बोंगाईगांव में 1951 के एनआरसी गणना में शामिल किए गए। 1951 एनआरसी में शामिल पारिवारिक नामों में सेजे बाला घोष के पिता दिगेंद्र चंद्र घोष, उनके बड़े भाई धीरेन घोष उर्फ माणिक घोष, उनकी बड़ी बहनों मनदा उर्फ उषारानी घोष और सुधारानी घोष शामिल हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक होगा कि उनकी माँ बरदा बाला घोष का नाम 1951 एनआरसी में शामिल नहीं किया गया था क्योंकि उस समय वह गर्भवती थीं और अपने मायके गई हुई थीं।
सुधारानी घोष और उषारानी घोष (जो अभी जीवित हैं) के अनुसार कुछ ही दिन बाद सेजे बाला घोष का जन्म गोलपाड़ा जिले के बिलाशीपाडा में अपने नाना के घर में हुआ। बोंगाईगांव में शरणार्थी शिविर में कुछ दिन रहने के बाद परिवार दर्रांग जिले में चल गया। दिगेंद्र चंद्र घोष और उनके चार बेटों और बेटियों को 1960 में पासपोर्ट भी जारी किया गया। दिगेंद्र चंद्र घोष के पासपोर्ट में उनका पता अविभाजित दर्रांग जिले के मंगलदोई पुलिस थाने के तहत बलगोर गाँव के निवासी के रूप में दर्ज किया गया था।
सेजे बाला घोष और उनके छोटे भाई हरीभक्त घोष ने सीजेपी को बताया कि उनके पिता का निधन 1961 में उसी गाँव में हुआ था। दिगेंद्र चंद्र घोष की पत्नी बरदा बाला घोष और माणिक घोष का नाम उसी पते के साथ 1966 की मतदाता सूची में शामिल किया गया जिस पते से दिगेंद्र चंद्र घोष का पासपोर्ट जारी किया गया था। 1966 की मतदाता सूची में दो लोग शामिल किए गए थे सेजे बाला घोष की माँ और भाई।
सीजेपी के प्रयास
सीजेपी की हमारी टीम ने उनका मामला लेने के बाद सारे दस्तावेज़ जुटाने शुरू किए। उन्हें फॉरेनर ट्रिब्यूनल के समक्ष सुनवाई के लिए उपस्थित रहना था पर यह आसान नहीं था। उनके एक बेटे की मौत हो चुकी थी और दूसरा कोविड-19 लॉकडाउन के कारण काम नहीं ढूंढ पा रहा था। परिवार बहुत मुश्किल से चल रहा था। पड़ोसियों और एक भतीजे की सहृदयता की वजह से वे सर्वाइव कर पा रही थीं। इस बीच, सेजे बाला का स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा। जब उन्होंने सुना कि लॉकडाउन हटते ही एफटी के समक्ष उनकी नागरिकता पर सुनवाई होगी, वह सदमे से बेहोश हो गईं और ज़मीन पर गिर पड़ीं जिसमें उनके हाथ की हड्डी टूट गई।
उस पीड़ादायक वक्त को याद करते हुए सेजे बाला घोष ने सीजेपी की नंदा घोष को बताया, “मैं तनाव के कारण खा नहीं पा रही थी। मैं सो नहीं पा रही थी। मुझे नींद की गोलियां लेनी पड़ रही थीं।”
इस अवधि के दौरान हमारी टीम ने कई चुनौतियों का सामना करते हुए उनसे बात की, उन्हें ढाढ़स बँधाया और मदद का आश्वासन दिया। जब सेजे बाला हाथ टूटने के कारण बिस्तर पर थीं, हमारी टीम की वरिष्ठ सदस्य पापिया दास उनके यहाँ जाती थीं और उन्हें मनोचिकित्सक सहायता मुहैया कराई। वकील दीवान अब्दुर रहीम, जो हमारी कानूनी टीम के प्रमुख सदस्य हैं, ने उनके घर कई बार जाकर दस्तावेजी प्रक्रिया और अन्य सरकारी औपचारिकताएं पूरी कीं। एक दिन उन्हें टूटे हाथ के साथ बेहद बुरी स्थिति में होने के बावजूद ट्रिब्यूनल में सुनवाई के लिए जाना पड़ा।
सेजे बाला के मामले में कानूनी लड़ाई
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, सेजे बाला घोष को बोंगाईगांव जिले की असम बॉर्डर पुलिस का नोटिस मिलने के बाद सीजेपी को पता चला कि उन पर बांग्लादेश से 25 मार्च 1971 के बाद आये संदिग्ध बांग्लादेशी का लेबल लगाया गया है। हमारी पड़ताल से पता चल कि यह बेबुनियादी आरोप जांच अधिकारी की तरफ से गैरजिम्मेदाराना तरीके से फाइल पर नोटिंग्स के कारण लगाए गए थे जो पूरी तरह गलत, गढ़े हुए और गलत मंशा से लगाए हुए हैं। संबंधित पुलिस कर्मचारी इस मामले के संबंध में उनके घर तक नहीं आए थे। उससे भी बुरी बात, मामले के जांच अधिकारी ने कभी उनका या अन्य गवाहों का कोई बयान दर्ज नहीं किया था और न ही यह (जैसा कि नियमानुसार जरूरत है) जांच रिपोर्ट के साथ ट्रिब्यूनल को सौंपा।
जांच अधिकारी की प्रक्रियागत और मूल गड़बड़ियां इससे भी पता चलती हैं कि कथित गवाहों के नाम और बयान, जो सीजेपी ने मामले के साथ लगे पाए, एक झूठा मामला बनाए जाने की मंशा से प्रेरित थे। जांच के समय (2004 के बाद) मामले में जांच अधिकारी ने सेजे बाला को कोई नोटिस भी जारी नहीं किया था कि वह कानून के तहत अपनी नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ों के साथ ट्रिब्यूनल के समक्ष उपस्थित हों।
इस तरह, पहले, जांच अधिकारी ने उनके खिलाफ बिना जांच किए गलत जांच रिपोर्ट जमा कराई। उसके बाद, जांच अधिकारी ने उनसे दस्तावेज़ – पासपोर्ट या अन्य कोई दस्तावेज़ – लेकर जांच रिपोर्ट के साथ जमा कराने की कोशिश नहीं की जो यह दर्शाती कि वह विदेशी नागरिक हैं।
और अंत में, सेजे बाला घोष को इस शारीरिक और प्रक्रियागत प्रताड़ना – जो सीजेपी के प्रयासों से कम हो सकी – से गुजरना पड़ा इस तथ्य के बावजूद कि यह मामला समयसीमा के कानून के तहत भी वर्जित हो जाता है। मामला 2004 में “दर्ज” किया गया था (बोंगाईगांव के पुलिस अधीक्षक का आदेश बताता है)। इसके बावजूद सेजे बाला घोष को 2004 का नोटिस कोविड –19 लॉकडाउन के बीच मार्च 2020 में यानी कथित “जांच” होने के 20 साल बाद मिलता है।
अंतत: जीत! लेकिन किस कीमत पर?
क्या सेजे बाला बांग्लादेशी हैं?
टीम सीजेपी के रूप में हम लगातार नागरिकता संकट के मुद्दे पर जमीन पर सक्रिय हैं। हमारे अनुभव ने हमें बताया है कि असहाय, हाशिये पर जो भारतीय हैं, खासकर महिलाएं, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और प्रताड़ित किया जा रहा है और उन पर “बांग्लादेशी” होने का लेबल लगाया जा रहा है।
सीजेपी ने कठिन लेकिन सब्र के साथ हस्तक्षेप और कार्य के साथ ऐसे कई पीड़ितों की मदद की है जो फॉरेनर ट्रिब्यूनल के समक्ष “भारतीय” घोषित होने में सफल हुए हैं।
इस तरह यह भी अंत में सीजेपी की एक और जीत है जो नवंबर 2023 में मिली और सेजे बाला घोष को भारतीय घोषित किया गया। लेकिन आदेश हमें 21 नवंबर 2023 को ही जाकर ट्रिब्यूनल से मिला। इस तरह सीजेपी टीम की तरफ से असम प्रदेश प्रभारी नंदा घोष, सदस्य वकील दीवान अब्दुर रहीम और उनके कनिष्ठ सहिदुर रहमान सेजे बाला घोष को आखिरी औपचारिकताएं पूरी करने और निर्णय की प्रति पाने के लिए ले गए।
नवंबर 21 (उम्मीद करते हैं) आखरी दिन होगा जब सेजे बाला को फॉरेनर ट्रिब्यूनल जाना पड़ा होगा। सभी आधिकारिक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद नंदा घोष और आशिकूल हुसैन ने उन्हें घर छोड़ा।
उससे पहले, पिछले तीन साल और आठ महीने में हर बार जब टीम उनसे मिलती थी, सेजे बाला की आँखों में आँसू होते थे। नवंबर 21 को वह बदली हुई थीं, बोल रही थीं, मुस्कुरा रही थीं और स्वस्थ दिख रही थीं। जब सीजेपी सचिव तीस्ता सेतलवाड़ ने उन्हें फोन पर बधाई तो उन्होंने समूची सीजेपी टीम को दुआएं और शुभकामनाएं दीं।
अपने घर लौटने से पहले हमने कुछ समय उनके साथ गुजारा। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता, क्या कहूँ! मैं बहुत परेशान थी और मुझे स्वीकार करना पड़ेगा और बाबा (सीजेपी के दोनों वॉलंटियर्स और अपने भतीजे का ज़िक्र करते हुए) के कारण तीन साल से अधिक समय के बाद मुझे आज न्याय मिला। मेरे वकील (दीवान अब्दुर रहमान) ने भी बहुत साथ दिया। मैं आप सबके लिए दुआ करती हूँ। खुश रहें!
आदेश यहाँ देखा जा सकता है :