राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2019 के लिए अपनी जेल सांख्यिकी रिपोर्ट जारी की है, और यह महिला कैदियों की स्थिति को दर्शाती है। आंकड़ों के मुताबिक, 4,78,600 कैदियों में से 4,58,687 पुरुष कैदी और 19,913 महिला कैदी थीं।
लगभग 1,300 जेलों में से, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक महाराष्ट्र, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित 15 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में 31 महिला जेलें हैं। पश्चिम बंगाल राज्य की महिला जेल में अधिभोग दर (142.04%) सबसे अधिक है, इसके बाद महाराष्ट्र (138.55%) और बिहार (112.5%) का स्थान है।
इन 31 जेलों की क्षमता 6,511 कैदियों की है और वर्तमान में इन जेलों में 3,652 महिला कैदी बंद हैं। इसलिए, अधिभोग दर 56.1% है। हालाँकि, जिन राज्यों में महिला जेल नहीं हैं, वहाँ महिलाओं को नियमित जेलों के अलग-अलग हिस्सों में रखा जाता है और इसलिए, इसके अतिरिक्त, नियमित जेलों में 16,261 महिला कैदी हैं। उत्तराखंड में महिला अधिभोग दर (170.1%) सबसे अधिक है, जबकि उत्तर प्रदेश में महिला कैदियों की संख्या (4,174) देश में सबसे अधिक है।
2014-19 के बीच 5 साल की अवधि में, महिला जेलों में महिला कैदियों की संख्या 21.7% (3,001 से 3,652) और नियमित जेलों में 10.77% (14,680 से 16,261) पहुंच गई है।
2014 से 2019 के बीच के वक़्फ़ें में महिला जेलों में क़ैदियों की तादाद में 21.7%( 3,001 से 3,652) उछाल दर्ज किया गया है जबकि सामान्य जेलों में महिलाओं की बढ़ोत्तरी का डाटा 10.77% (14,680 से 16,261) पर ठहर गया है.
महिला क़ैदी और क़ैदख़ाने
महिला क़ैदियों की बढ़ती तादाद के बारे में एक ख़ास बात ये भी है कि इन क़ैदियों में से ज्यादातर के मामले विचाराधीन (under-trial) हैं जबकि दोषसिद्ध अपराधियों (convicts) की तादाद बेहद कम है. 2,246 क़ैदियों के मामले विचाराधीन हैं जबकि अपराधी साबित हो चुकी महिलाओं की संख्या 1,346 और हिरासत में बंद महिलाओं (detenues) की संख्या 60 है.
दिल्ली की महिला जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे अधिक (521) है और तमिलनाडु की जेलों में बंदियों की संख्या सबसे अधिक (37) है।
कुल 19,913 महिला कैदियों में से 13,550 विचाराधीन कैदी, 6,179 दोषी और 99 बंदी हैं। सभी विचाराधीन कैदियों में से, 7 महिलाएँ सीआरपीसी की धारा 436ए के तहत रिहाई के लिए पात्र थीं [जिन विचाराधीन कैदियों ने आरोपी अपराधों के लिए कुल मिलाकर आधे से अधिक सजा की सजा काट ली है, वे रिहाई के लिए पात्र हैं] और इनमें से 5 को रिहा कर दिया गया।
बच्चों के साथ कैदी
1,779 बच्चों के साथ 1,543 महिला कैदी थीं, जिनमें से 1,212 महिला कैदी विचाराधीन कैदी थीं जिनके साथ 1,409 बच्चे थे और 325 दोषी कैदी थे जिनके साथ 363 बच्चे थे।
उत्तर प्रदेश में बच्चों वाली महिलाओं की संख्या सबसे अधिक (490 बच्चों वाली 430 महिलाएं) हैं, इसके बाद पश्चिम बंगाल (192 बच्चों वाली 147 महिलाएं) और मध्य प्रदेश (177 बच्चों वाली 148 महिलाएं) हैं।
जेल का बुनियादी ढांचा
कुछ राज्यों ने महिला जेल की दीवारों के भीतर क़ैदियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, बच्चों के अलग कमरे और शिक्षा का बेहतरीन इंतज़ाम किया है. फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अधिकतर क़ैदख़ाने बुनियादी सुविधाओं के अकाल से जूझ रहे हैं.
आंध्र प्रदेश- आंध्र प्रदेश में जेलों के भीतर कंप्यूटर लैब्स बनाए गए हैं. इसके अलावा राजामहेंन्द्रवरम जेल में बड़ी तादाद में मेडिकल कैंप्स लगाकर महिला क़ैदियों को स्वास्थ्य सेवाएं दी जाती हैं. आंध्र के विशेष जेलों (Special Prisons) में बच्चों के लिए अलग कमरे और नर्सरी शिक्षा का इंतज़ाम भी किया जाता है. इन जेलों में बच्चों की बेहतरीन परवरिश और सेहतमंद माहौल के लिए डिपोर्टमेंट ने उन्हें स्कूल भेजने का बीड़ा भी उठाया है.
तमिलनाडु- महिलाओं के लिए सभी विशेष जेलों में महात्मा गांधी सामुदायिक कॉलेज के साथ-साथ प्राथमिक विद्यालय भी स्थापित किए गए। महिला जेलों में एम्बुलेंस, परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक हैं।
पुज़हाल, वेल्लूर और तिरुचिरापल्ली में प्रति घंटे 500 लीटर की क्षमता वाले रिवर्स ओसमिसिस प्लॉंट सैल्स (Reverse Osmosis Plant cells) का इंतज़ाम किया गया है. जबकि रिश्तेदारों से संपर्क बनाए रखने की कोशिश में 65 टेलीफ़ोन बूथ भी इस कड़ी का हिस्सा हैं. इसके अलावा जेल में पैदा बच्चों को 6 साल की उम्र तक मां के साथ रहने की इजाज़त है. यहां जेल-प्रशासन की तरफ से महिला क़ैदियों के साथ निवास कर रहे बच्चों के लिए आधा लीटर दूध, भोजन, कपड़ा, छत और स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं. मेडिकल ऑफ़िसर के निर्देशों के अनुसार एक साल तक के बच्चों के पोषण के लिए ख़ास तौर पर बेबी-फूड और अन्य ज़रूरी सुविधाओं का इंतज़ाम भी किया जाता है.
तमिलनाडू का राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority) इन महिला क़ैदियों को क़ानूनी मदद (Legal Aid Service) भी मुहैय्या कराता है. इसके अलावा मजिस्ट्रेट द्वारा रोज़ाना की दर पर इन मामलों के निपटारे के लिए सुनवाई भी जाती है. सभी विशेष क़ैदख़ानों में आने-जाने वालों का हिसाब किताब रखने के लिए सॉफ़्टवेयर (Visitors Management System software) का इस्तेमाल भी इस इंतज़ाम की कड़ी का ख़ास हिस्सा है.
गुजरात-
गुजरात ने भी महिला क़ैदियों के पुनर्वास (rehabilitation) को मद्देनज़र रखते हुए अनेक कोर्स जारी किए हैं. जिसके तहत वडोदरा महिला जेल में मेंहदी, पार्लर, सिलाई-कढ़ाई के अलावा अंग्रेज़ी स्पीकिंग कोर्स भी चलाए जा रहे हैं. NGO और जेल प्रशासन के सहयोग की बदौलत आज महिला क़ैदियों के बच्चे आंगनवाड़ी और प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा हासिल कर पा रहे हैं. अहमदाबाद केंद्रीय जेल (Ahmedabad Central Prison) और वडोदरा केंद्रीय जेल (Vadodara Central Prison) में अनपढ़ महिला क़ैदियों में शिक्षा की अलख जगाने के लिए महिला शिक्षक तैनात की गई हैं. राज्य सरकार की बाल विकास योजना (Child Development scheme) के तहत ये बच्चे अब पोषक ख़ुराक से महरूम नहीं हैं.
दिल्ली-
दिल्ली की महिला जेलों में क़ैद महिलाएं भी सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, फ़ैशन ज्वैलरी, जूट उत्पाद और लिफ़ाफ़ा निर्माण से लेकर दीया, मोमबत्ती, नमकीन, अगरबत्ती, अचार, पापड़, पेंटिंग, हर्बल पैक, आर्टिफ़िशएल फूलों और मिट्टी के बर्तन बनाने तक जीवन चलाने के अनेक रचनात्मक गुर सीख रही हैं. इन महिला जेलों में कंम्प्यूटर, कला, नृत्य और अंग्रेज़ी स्पीकींग कोर्स की भी बराबर तालीम दी जा रही है.
क़ानून के मुताबिक़, जेल में बंद महिला क़ैदी 6 वर्ष तक की उम्र वाली संतान को अपने साथ जेल में रख सकती है. ‘पर्ल एकेडमी’ ने भी इन महिलाओं की मदद की पेशकश करते हुए फ़ैशन और ब्यूटी से जुड़ी कार्यशालाओं के ज़रिए मदद का बीड़ा उठाया है.
महिला स्टॉफ़
NCRB रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारतीय जेलों में क़रीब 7,794 औरतें काम कर रही थीं. इसमें मध्य प्रदेश में जेल विभाग में महिला स्टॉफ़ की तादाद सबसे ज़्यादा 1,110 दर्ज की गई जबकि बिहार में ये आंकड़ा 914 रहा और राजस्थान ने 701 महिला स्टॉफ़ मौजूदगी दर्ज कराई.
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