सितंबर आने के साथ ही दलित उत्पीड़न और हिंसा के नए मामले तेज़ हो गए हैं. पिछले महीने, सबरंग इंडिया ने अपने पाठकों के लिए दलित पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने रखे थे, जो काफी हद तक मीडिया में रिपोर्ट नहीं किए गए थे या सोशल मीडिया पर सुर्खियां हासिल करने में विफल रहे थे। सबरंग इंडिया ने तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में ऐसी अनेक घटनाओं को रिपोर्ट किया है.
अगस्त माह में तमिलनाडु में दलित विद्यार्थियों पर हिंसा की दो अलग घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं जबकि महाराष्ट्र में दलित महिला को सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित किया गया और राजस्थान में दो दलित लड़कों को बांध कर उनका उत्पीड़न किया गया. इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में एक दलित युवक को क्रूरता से पीटा गया जबकि एक दलित युवक की हत्या कर दी गई. इसके बाद इस हफ़्ते फिर हिंसा की एक ऐसी घटना सामने आई है.
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सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में भी जाति आधारित हिंसा का एक ऐसा मामला सामने आया है. इसके मुताबिक़ सुल्तानपुर में बलरामपुर गांव में 18 साल के दलित लड़के को 4 दिन मज़दूरी करने के बाद 12,00 रूपए पगार मांगने के कारण कथित तौर पर हत्या कर दी गई.
प्रताड़ित के बड़े भाई ने द क्विंट से बात करते हुए कहा कि –
‘’इस देश में दलित होने का मूल्य चुकाना पड़ता है. इसमें उसकी क्या ग़लती है? उन्होंने उसे सिर्फ़ 1200 रूपए के लिए मारा डाला, हमारा जीवन कितना सस्ता हो गया है.’’
25 अगस्त को 3 बजे के क़रीब प्रताड़ित युवक साइकिल से अपनी पगार मांगने अनुज यादव के घर गया था. हालांकि शाम 7 बजे गिरिजेश यादव पीड़ित के घर आया और उसने सूचना दी कि युवक का एक्सीडेंट हो गया है और वो अंबेडकरनगर के सिविल अस्पताल में भर्ती है. 8 बजे अस्पताल पहुंचने पर परिवार को सूचित किया गया कि उस व्यक्ति का पहले से देहांत हो चुका है.
26 अगस्त को दर्ज इस FIR में ये स्पष्ट हो गया कि घायल व्यक्ति के शरीर पर घाव किसी दुर्घटना से नहीं बने हैं. द क्विंट ने इस शिकायत में बताया कि युवा व्यक्ति पर किसी धारदार हथियार से हमला किया गया था.
भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जबकि आरोपियों में से एक, दिग्विजय सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया और पुलिस हिरासत में है, अधिकारी सक्रिय रूप से एक अन्य व्यक्ति की तलाश कर रहे हैं जो अब तक अज्ञात है।
इस ख़तरनाक घटना के बाद क़रीब 300 दलितों ने आरोपी के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट करके फ़ौरन कार्रवाई की मांग की है. प्रताड़ित युवक के भाई ने बयान दिया कि –
‘’FIR में दर्ज ये बयान काफ़ी कमज़ोर हैं, ये घटनाएं अब आम हो चुकी हैं. प्रशासन को ऐसे अपराधियों के ख़िलाफ़ कड़ी कारवाई करनी चाहिए.’’
अखंडनगर पुलिस स्टेशन के स्टेशन ऑफ़िसर संजय कुमार वर्मा ने द क्विंट को बताया कि जबतक दिग्विजय सिंह पुलिस हिरासत में है FIR में दर्ज अनाम व्यक्ति को खोजना हमारी पहली प्राथमिकता है. पुलिस ने बयान में कहा कि –
‘इस मामले की जांच जारी है. आरोपियों में से एक दिग्विजय सिंह ने सरेंडर कर दिया और फ़िलहाल वो पुलिस कस्टडी में है. हम उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं जिसने पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने में सहयोग किया.’
विक्टिम के भाई ने बढ़ती चिंताओं के मद्देनज़र कहा कि – ‘’उन्हें लगता है कि एक दलित को मारना उचित है लेकिन हमारे गांव में जातिवाद के गंभीर होने के बावजूद ऐसा मामला सचमुच अफ़सोसनाक है क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.’’
बरेली, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में एक दूसरे ऐसे मामले में एक दलित युवती को दो मुसलमान युवकों के हाथों ऐसी ही हिंसा का शिकार होना पड़ा. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार प्रताड़ित युवती को एक मुसलमान दोस्त धोखा देकर होटल ले गया था जहां उसका बलात्कार हुआ, उसकी फ़िल्म बनाई गई और उसे जबरन बीफ़ खिलाने की कोशिश की गई.
इन आरोपियों में से एक बी. फ़ार्मा का स्टूडेंट सोहेब है जबकि दूसरे का नाम नाज़िम है. इस जघन्य घटना का वीडियो बनाने के बाद सर्वाईवर को 5 लाख रूपए मांगकर ब्लैकमेल करने की कोशिश भी की गई. इसके बाद उन्होंने पीड़िता के मंगेतर को वीडियो भेजा और कश्मीर भागने की कोशिश की जहां नाज़िम एक दुकान चलाता था.
ब्लैकमेल के परिणामों से डरकर पीड़िता ने इस घटना की पुलिस में रिपोर्ट की. दरअसल पीड़िता ने अपने मुसलमान दोस्त से कुछ पैसे लिए थे जिसे वो चुकाना चाहती थी. 2 सितंबर को उसे अपराध में शामिल एक आरोपी स्त्री द्वारा कैफ़े में बुलाया गया जहां दो पुरूष अपराधी उसका इंतज़ार कर रहे थे. इसके बाद उसे होटल ले जाया गया जहां उसके साथ सामुहिक बलात्कार हुआ.
पीड़िता की शिकायत पर पुलिस ने SC/ST एक्ट के अहम सेक्शन्स के तहत पुलिस केस रजिस्टर कर लिया. जिसके बाद तीनों आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
दलित महिलाओं के मामले में नेशनल क्राईम रिकार्ड्स ब्यूरो के डाटा के अनुसार 2015 से 2020 के बीच दलित महिलाओं के बलात्कार की दर्ज घटनाओं में तक़रीबन 45 प्रतिशत उछाल आया है. आश्चर्यजनक रूप से ये डाटा ये भी बताता है कि इस समय भारत में रोज़ दलित महिलाओं और लड़कियों के साथ रेप की क़रीब 10 घटनाएं होती हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2025-16 के अनुसार भी लैंगिक हिंसा के आंकड़ों में तेज़ उछाल आया है. शेड्यूल्ड ट्राईब्स (आदिवासी और मूल निवासी) के मामलों में कुल 7.8% उछाल आया है जबकि शेड्यूल कास्ट (दलितों) के मामले में ये आंकड़ा 7.3% है.
मार्च 2023 में भारत सरकार ने संसद को सूचित किया है कि 2018 से लेकर अगले 4 सालों के बीच दलितों के ख़िलाफ़ अपराध के क़रीब 1.9 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. नेशनल क्राईम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार, उत्तर प्रदेश में दलितों पर हमले के क़रीब 49,613 मामले दर्ज किए गए हैं. (2018 में 11,924, 2019 में 11,829, 2020 में 12,714 और 2021 में 13,146). केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने BSP के MP गिरीश चंद्र के सवाल की प्रतिक्रिया में ये सूचना साझा की है.
भारत में सिर्फ़ 4 सालों में दलित समुदाय के ख़िलाफ़ अपराध के क़रीब 1,89,945 मामले दर्ज हुए हैं. (2018 में 42,793 – 2019 में 45,961 – 2020 में 50,291 और 2021 में 50,900)! इन सब मामलों को मिलाकर क़रीब 1,50,454 मामलों में चार्जशीट दायर की गई जिसके बाद सिर्फ़ 27,754 मुक़दमे दर्ज किए गए. ये सिर्फ़ रिपोर्ट किए गए मामलों का आंकड़ा है, जबकि ऐसे मामले जो लॉ इंफ़ोर्समेंट ऑफ़िसर्स तक नहीं पहुंचते हैं उनका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है.
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