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सुलेमान पठान लिंचिंग जांच के दौरान शिव प्रतिष्ठान रैली में पुलिस की भूमिका पर CJP ने महाराष्ट्र DGP और जलगांव SP से शिकायत की

एक ऐसे घटनाक्रम में, जो संस्थागत निष्पक्षता और आपराधिक जांच की अखंडता पर गंभीर सवाल उठाता है, सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) और जलगांव के पुलिस अधीक्षक के समक्ष एक विस्तृत शिकायत दर्ज कराई है। इस शिकायत में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान द्वारा आयोजित एक सांप्रदायिक रैली में खुले तौर पर शामिल होने वाले जलगांव जिले के जामनेर पुलिस स्टेशन के अधिकारियों के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की गई है। यह वही संगठन है जिसके सदस्यों पर अगस्त 2025 में 20 वर्षीय सुलेमान पठान की लिंचिंग का आरोप है।

DGP को संबोधित और महाराष्ट्र गृह विभाग व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी गई शिकायत में कहा गया है कि इस तरह का आचरण न केवल पद की शपथ और महाराष्ट्र पुलिस आचरण नियमों का उल्लंघन है, बल्कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में पुलिस की निष्पक्षता के संवैधानिक सिद्धांत के भी विरुद्ध है।

CJP ने संबंधित अधिकारियों को तत्काल निलंबित करने, सुलेमान पठान मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने और सांप्रदायिक तथा नफरती अपराधों में पुलिस की निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु राज्यव्यापी निर्देश जारी करने की मांग की है।

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अपराध: नफरत से उपजी लिंचिंग

11 अगस्त 2025 को जलगांव के जामनेर तालुका के बेटावद खुर्द निवासी 20 वर्षीय सुलेमान खान पठान को एक हिंदू लड़की के साथ कैफे में देखे जाने पर भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला। यह कैफे स्थानीय पुलिस स्टेशन से कुछ ही मिनटों की दूरी पर था।

Scroll.inThe WireArticle 14 और NDTV की रिपोर्टों के अनुसार, भीड़ ने सुलेमान को कैफे से घसीटकर बाहर निकाला, उसका अपहरण किया, घंटों तक उसकी पिटाई की और अंततः उसके परिवार के सामने ही उसकी हत्या कर दी। जब उसके पिता, मां और बहन ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो उन्हें भी पीटा गया।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(1) और 103(2) (भीड़ द्वारा हत्या के प्रावधान) के तहत दर्ज प्राथमिकी में आठ आरोपियों के नाम हैं, जिनमें चार — आदित्य देवरे, कृष्णा तेली, सोजवाल तेली और ऋषिकेश तेली — शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के सक्रिय सदस्य पाए गए। यह संगठन संभाजी भिड़े के नेतृत्व में चलता है, जो अपने मुस्लिम विरोधी भाषणों और भगवा झंडे को “राष्ट्रीय ध्वज” बताने के लिए कुख्यात हैं।

वेशभूषा और विचारधारा

1984 में संभाजी भिड़े द्वारा स्थापित शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान ने खुद को एक अतिराष्ट्रवादी, संविधान-विरोधी और सांप्रदायिक संगठन के रूप में स्थापित किया है। भिड़े के भाषणों में अक्सर नफरत भरे वक्तव्य होते हैं — जैसे मुसलमान पुरुषों के खिलाफ हिंसा भड़काने या तिरंगे की जगह भगवा झंडा फहराने की अपील करना। इन भाषणों को लेकर उन पर कई बार शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन सजा शायद ही कभी हुई हो।

Scroll.in और The Wire की रिपोर्टों के अनुसार, यह संगठन उत्तर महाराष्ट्र में तेजी से फैल रहा है। सैकड़ों युवाओं को इसमें भर्ती किया गया है, जिन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शारीरिक प्रदर्शन और सोशल मीडिया अभियानों के जरिए प्रभावित किया जाता है।

इन अभियानों में खुले तौर पर सांप्रदायिक भावनाएं भरी होती हैं। इसके सदस्य सुलेमान के हत्यारों का महिमामंडन करते हुए, पीड़ित को “जिहादी” और हत्या को “हिंदू महिलाओं की रक्षा” के रूप में सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।

जुलूस: पुलिस और आरोपी संगठन साथ-साथ

जब सुलेमान लिंचिंग की जांच अभी जारी थी, उसी दौरान दशहरे (अक्टूबर 2025) पर जामनेर में दुर्गा माता महा दौड़ का आयोजन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान द्वारा किया गया।
हजारों लोग भगवा पगड़ियां पहनकर, त्रिशूल, तलवारें और लाठियां लिए सड़कों पर उतरे।
रैली में भड़काऊ नारे लगाए गए —
“दुर्गा बन, तू काली बन, कभी न बुर्के वाली बन।”

इनमें कई वर्दीधारी पुलिस अधिकारी भी शामिल थे — जिनमें इंस्पेक्टर मुरलीधर कासार भी थे, जो सुलेमान लिंचिंग के प्रमुख जांच अधिकारी हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कासार को संगठन का भगवा झंडा थामे रैली का नेतृत्व करते हुए और प्रतिभागियों का तिलक लगाकर स्वागत करते देखा जा सकता है। झंडे पर “अखंड भारत” का केसरिया नक्शा बना था और उसे “भारत का सच्चा राष्ट्रीय ध्वज” बताया गया — जो प्रतीकात्मक रूप से तिरंगे को नकारता है। उस पल कानून लागू करने वालों और विचारधारा फैलाने वालों के बीच की सीमा पूरी तरह मिट गई।

 

पुलिस की शपथ और संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन

CJP की शिकायत में कहा गया है कि यह आचरण महाराष्ट्र पुलिस के हर अधिकारी द्वारा ली गई शपथ का सीधा उल्लंघन है —
जिसमें वे संविधान के प्रति “सच्ची आस्था और निष्ठा” रखने तथा अपने कर्तव्यों को “डर या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के बिना” निभाने की शपथ लेते हैं।

यह महाराष्ट्र सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1979 का भी उल्लंघन है, विशेष रूप से:

वर्दी पहनकर और सांप्रदायिक संगठन के झंडे तले मार्च करना न केवल निष्पक्षता की भावना को नष्ट करता है, बल्कि जांच की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है।
शिकायत में कहा गया है — “जब जांच अधिकारी उन्हीं लोगों के साथ मार्च करता है जिनकी जांच चल रही है, तो जांच निष्पक्ष नहीं रह सकती।”

प्रभावित जांच और परिवार का भय

सुलेमान का परिवार पहले ही पुलिस पर पक्षपात, डराने-धमकाने और एफआईआर में लापरवाही के आरोप लगा चुका है। अब जब वही अधिकारी आरोपियों के संगठन के साथ जुलूस में शामिल दिखे, तो परिवार का अविश्वास और गहरा हो गया है। वे न्यायिक निगरानी की मांग कर रहे हैं ताकि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित हो सके।

कानूनी संदर्भ

सुप्रीम कोर्ट ने Tehseen S. Poonawalla बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) मामले में लिंचिंग से निपटने के लिए बाध्यकारी दिशानिर्देश दिए हैं। इनमें स्पष्ट कहा गया है कि जांच निष्पक्ष होनी चाहिए, किसी सांप्रदायिक प्रभाव से मुक्त रहनी चाहिए, और दोषी अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए।

CJP की शिकायत में इन निर्देशों का हवाला दिया गया है और मांग की गई है कि जामनेर पुलिस अधिकारियों के आचरण की तुरंत अनुशासनात्मक जांच हो। साथ ही, शिकायत में नेशनल पुलिस कमीशन की आचार संहिता का भी उल्लेख है, जो यह कहती है कि कोई भी अधिकारी अपने व्यक्तिगत या विचारधारात्मक विश्वासों को अपने आधिकारिक कार्य में प्रभावी नहीं होने दे सकता।

CJP की प्रमुख मांगें

संस्थागत समस्या और निष्पक्षता का संकट

यह मामला केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक गहरी संस्थागत समस्या को उजागर करता है —
जहां पुलिस का एक वर्ग कानून और अपनी विचारधारा के बीच की रेखा मिटा देता है।
इंडिया हेट लैब की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में नफरत भरे भाषण और सांप्रदायिक अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है — जो उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है।

ऐसे माहौल में पुलिस की निष्पक्षता केवल एक नैतिक ज़रूरत नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अस्तित्व का प्रश्न है।
एक तस्वीर — जिसमें जांच अधिकारी भगवा झंडा थामे चलता दिखे — नागरिकों और राज्य के बीच दशकों से बने भरोसे को एक पल में मिटा सकती है।

पूरी शिकायत यहां पढ़ी जा सकती है।