श्रम मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी ड्राफ्ट राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति (ड्राफ्ट श्रम शक्ति नीति, 2025) के विश्लेषण में सीजेपी (CJP) ने यह स्पष्ट किया है कि इस दस्तावेज की रूपरेखा और मंशा किसी भी विशेष प्रकार के मजदूरों – जैसे गिग वर्कर, कृषि मजदूर, फैक्टरी मजदूर, मनरेगा मजदूर या प्रवासी मजदूर -पर केंद्रित नहीं है। सीजेपी का कहना है कि ऐसी स्पष्टता और विस्तार जरूरी है ताकि नीति यह सुनिश्चित कर सके कि मजदूरों को ऐसी कौशल शिक्षा मिले जिससे वे सामाजिक रूप से आगे बढ़ सकें – खासकर एआई (Artificial Intelligence) के दौर में। इसके अलावा, सीजेपी का तर्क है कि “नीति को केवल प्रशासनिक सुविधा तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे एक ऐसी श्रम नीति के रूप में विकसित होना चाहिए जो भारत को बेहतर वेतन, बेहतर जीवन-स्तर और बेहतर कार्य परिस्थितियों के दौर की ओर ले जाए। सच्चाई है कि नीति में ट्रेड यूनियनों का जिक्र न होना और मौजूदा कार्यबल को केवल तकनीक के जरिए औपचारिक रूप देने की बात करना उचित नहीं है, क्योंकि इससे मजदूरों की समस्याएं व्यक्तिगत स्तर तक सीमित हो जाती हैं और उनकी सामूहिक सौदेबाज़ी की ताकत (bargaining power) कमजोर पड़ जाती है जो कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।”
करीब एक महीने पहले ड्राफ्ट श्रम शक्ति नीति 2025 को सार्वजनिक किया गया था और मंत्रालय ने इस पर सुझाव और प्रतिक्रियाएं मांगी थीं। सीजेपी (CJP) का कहना है कि बदलती तकनीकी, जनसांख्यिकीय और आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए भारत की श्रम और रोजगार नीति को अपडेट करने की यह पहल स्वागतयोग्य है। लेकिन मसौदे के गहन अध्ययन के बाद, इस मानवाधिकार संगठन ने विस्तृत टिप्पणियां और ठोस सिफारिशें पेश की हैं ताकि यह नीति वास्तव में समानता, गरिमा और सामाजिक न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों को आगे बढ़ाने का काम कर सके।
नीति को अलग–अलग वर्गों के मजदूरों के हिसाब से विस्तार से विभाजित करने और लागू करने की जरूरत को समझाते हुए, सीजेपी (CJP) ने अपनी विस्तृत “टिप्पणियों और सिफारिशों” में कहा है कि–मनरेगा के तहत काम की मांग लगातार बढ़ रही है, गिग वर्कर अस्थिर और असुरक्षित परिस्थितियों में काम कर रहे हैं और गिग वर्करों की संख्या बहुत ज्यादा है। कृषि मजदूरों को रोजगार की सबसे ज्यादा असुरक्षा झेलनी पड़ती है, फिर भी ग्रामीण इलाकों में उनकी उपलब्धता कम होती जा रही है। इन सभी वर्गों की समस्याएं अलग–अलग हैं, इसलिए इनके लिए अलग–अलग कार्ययोजनाएं और नीतिगत दृष्टिकोण तैयार किए जाने चाहिए। लोगों को नौकरियों और नियोक्ताओं से जोड़ने की प्रशासनिक सुविधा और मंत्रालयों व विभागों के बीच आंकड़ों का केंद्रीकृत प्रबंधन सरकार के लिए तो फायदेमंद है।” इसके साथ ही, “श्रमिकों, नियोक्ताओं और राज्य के बीच त्रिपक्षीय वार्ता के लिए एक स्पष्ट ढांचे के अभाव से निर्णय लेने की शक्ति सरकार के पास केंद्रित होने और श्रमिकों का एक जैसा परिणाम हासिल करने की क्षमता कमजोर होने का खतरा है। संरचनात्मक स्तर पर, समवर्ती क्षेत्र में राज्य की शक्तियों में निरंतर कमी, सार्थक श्रम सुधार के लिए आवश्यक संघीय संतुलन को कमजोर करती है।“
संपूर्ण नीति के केंद्र में इन कमियों को दूर करते हुए, सीजेपी ने कहा है कि एक संशोधित दृष्टिकोण में निम्नलिखित बिंदु शामिल होने चाहिए:
- ऊपर उल्लिखित विभिन्न प्रकार के श्रमिकों के लिए विशिष्ट दृष्टिकोणों को शामिल करके आगे के मसौदों में इन मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर त्रिपक्षीय वार्ता ढांचे पेश किए जाने चाहिए जहां राज्य श्रमिक हितों का मध्यस्थ न होकर संवाद का सूत्रधार हो।
- संघीय नीति संरचना पर जोर देकर, श्रम प्रशासन में राज्य सरकारों की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करते हुए, संविधान की एक मूलभूत विशेषता, सहकारी संघवाद पर अनुभाग को मजबूत किया जाना चाहिए।
- संविधान के अनुच्छेद 19, 41 और 43 के तहत श्रमिक भागीदारी और नीति सह–निर्माण के लिए ट्रेड यूनियनों और सामूहिक सौदेबाजी को संवैधानिक तंत्र के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता दी जानी चाहिए।
श्रम शक्ति नीति के मसौदे पर शेष सारणीबद्ध टिप्पणियां (Tabular Comments) यहां पढ़ी जा सकती हैं:

