गंगा-जमुनी तहज़ीब और बनारसी साड़ी के लिए दुनिया भर में मशहूर बनारस अब अपनी विरासत बचाने के लिए संघर्ष करता नज़र आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में बनारसी साड़ी बुनने वाले ‘फनकारों’ की उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार की पूँजीवादी नीतियों की वजह से हथकरघा और पावरलूम के कारखाने आम बुनकरों के हाथो से छीनते जा रहे है।
आर्थिक संकट से जूझ रहे बुनकरों ने इस पुस्तैनी उद्योग और अपनी विरासत को बचाने का बीड़ा आज बनारस का नौजवान बुनकर उठाए हुए है और प्रदेश सरकार से लगातार मांग करते आ रहे है कि बुनकरो को पहले की तरह ही फ्लैट रेट पर बिजली दी जाए। साथ ही साड़ी बुनाई में लगने वाले रॉ मेटेरियल जो सूरत और बैंगलोर से महंगे दामों में लेना पड़ता है इसकी फैक्ट्री उत्तर प्रदेश में ही लगाई जाए। यूपी की योगी सरकार कई सालों से बुनकरों की बिजली का बिल माफ करने और फ्लैट रेट पर बिजली बहाली की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू करने का वादा करती आ रही है। पर आज तक उसने बुनकरों से किये अपने वादों को पूरा नहीं किया। जिसके खिलाफ समय समय पर बुनकरों ने आंदोलन का रास्ता अपनाते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला।
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हमने बुनकरों के बीच कार्य करने वाले और पेशे से बुनकर शहनवाज़ अख्तर जो जलाली पूरा, बटलोइया ,और अमरपुर मड़िया, के बुनकरों के बीच कार्य करते है। उन्होंने बुनकरों की दशा और दिशा पर हमारे साथ काफ़ी लंबी चर्चा की उन्होंने बताया एक तरफ योगी सरकार बुनकरों को फ्लैट रेट पर बिजली देने का भरोसा दिला रही है तो वहीं दूसरी ओर बिजली विभाग के अफसर उन्हें मीटर रीडिंग के आधार पर बिजली का बिल थमा रहे हैं।
बनारस के कुछ इलाकों में पावरलूम पर काम करने वाले बुनकरों को एक हज़ार रुपये की दर से बिजली बिल जमा करने के लिए कहा जा रहा है। बिजली के मुद्दे पर पिछले दो सालों से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। योगी सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। उत्तर प्रदेश के बुनकर इसलिए मीटर रीडिंग के आधार पर बिजली का बिल अदा करने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि इसके उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई शासनादेश जारी नहीं किया गया है।
फ्लैट रेट बिजली का आदेश ना आने के कारण बुनकरों पर बिजली का बकाया बढ़ता ही जा रहा है इसके कारण बिजली विभाग द्वारा बनारस के हर इलाकों में कई बुनकरों के कनेक्शन काट दिए गए हैं। लॉकडाउन में काफ़ी समय तक बुनकरों का काम बंद था, लेकिन बिजली महकमा अब उस समय का भी बिल मांग रहा है।
जो बुनकरों के साथ नाइंसाफी है और नाइंसाफी इसलिए की जा रही है क्योंकि बनारसी साड़ी के धंधे से जुड़े ज़्यादातर लोग मुस्लिम समाज के हैं।
समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकार किसके इशारे पर समूचे बनारसी साड़ी उद्योग को तबाह बर्बाद करने पर उतारू है। यूपी में भाजपा डबल इंजन की सरकार है, फिर भी वह बनारसी साड़ी के नाम से दुनिया भर में मशहूर इस धंधे को पूरी तरह खत्म करने पर तुली है।
भाजपा सरकार पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों का तो बकाया माफ कर रही है, और उन्हें तमाम रियायतें और अनुदान भी दे रही है, लेकिन कुटीर उद्योगों को तबाह कर देना चाहती है।”
और उन्होंने कहा, ”बनारस के बुनकर आज अपनी ही विरासत और दस्तकारी को बचाने के लिए संघर्ष करते नज़र आ रहे हैं। बनारस की संस्कृति, हस्तशिल्प और बुनकरों की आजीविका को बचाना बेहद ज़रूरी है।
ख़ाश कर बुनकरों का साझा दर्द यह भी है कि योगी सरकार ने उनके घरों पर नए स्मार्ट मीटर लगवा दिए हैं। नई व्यवस्था के लागू होने के बाद उन्हें अब महीने का 1500 से 2000 रुपये बिजली का बिल देना पड़ रहा है, जिससे उनकी माली-हालतबिगड़ती जा रही है।
बनारस में बुनकरों की आबादी करीब 5 लाख है। पूर्व की मुलायम सरकार ने साल 2006 में यूपी के बुनकरों के लिए फ्लैट रेट पर बिजली देने की योजना शुरू की थी। पावरलूम पर साड़ियों की बुनाई करने वाले कारीगरों को पहले पावरलूम पर 70 से 75 रुपये ही बिजली का बिल चुकाना पड़ता था। सत्ता बदलने के बाद एक जनवरी 2020 से योगी सरकार ने बुनकरों को प्लैट रेट पर बिजली देने से मना कर दिया। तभी से बिजली विभाग और बुनकरों के बीच बिलों की अदायगी को लेकर विवाद चल रहा है।बुनकरों के सामने पेट पालने का संकट है। परिवार चलाने के लिए तमाम बुनकरों को अपने पावरलूम कबाड़ के भाव बेचने पड़ रहे है।
शहनवाज़ अख्तर ने बताया की उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हथकरघा और पावरलूम उद्योग से जुड़े कारीगरों को राहत पहुंचाने के लिए 21 फरवरी 2023 को पेश किए गए बजट में कहा है कि इसके लिए रियायती दरों पर बिजली मुहैया करने के लिए 345 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। यूपी के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 21 फरवरी 2023 को साल 2023-24 के बजट भाषण में कहा था कि कृषि के बाद हथकरघा उद्योग सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाला विकेंद्रीयकृत कुटीर उद्योग है। यूपी में करीब 1.91 लाख हथकरघा बुनकर तकरीबन 80 हज़ार हथकरघों पर साड़ियों की बुनाई करते हैं। प्रदेश में 2.58 लाख पावरलूम पर 5.50 लाख बुनकर काम करते हैं, जिससे उनकी आजीविका चलती है।
वित्त मंत्री खन्ना के मुताबिक, ”वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यूपी में उत्तर प्रदेश टेक्सटाइल एंड गारमेंटिंग पालिसी-2022 प्राख्यापित की गई है, जिसमें वस्त्र क्षेत्र के निवेशकों और नया स्वरोज़गार शुरू करने के लिए युवाओं को कई तरह की वित्तीय सुविधाएं दी गई हैं। इस योजना के तहत 150 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था की गई है। गारमेंटिंग नीति 2017 के तहत 175 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। ‘मुख्यमंत्री पावरलूम उद्योग विकास योजना’ के लिए 20 करोड़ रुपये और ‘मुख्यमंत्री बुनकर सौर ऊर्जा’ के लिए दस करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। ‘झलकारी बाई कोरी हथकरघा एवं पावरलूम विकास योजना’ के लिए करीब 18 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।”
वहीं उन्होंने सरकार से सवाल किया के उन वादों का क्या हुआ?
जो पिछले साल एक दिसंबर को योगी सरकार ने हैंडलूम्स और पावरलूम को सौर ऊर्जा से चलाने के लिए कैबिनेट ने मंज़ूरी दी थी। योजना के तहत पावरलूम को सौर ऊर्जा से ऊर्जीकृत करने के लिए सामान्य वर्ग के बुनकरों को 50 फीसदी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बुनकरों को सरकार द्वारा 75 फीसदी की सब्सिडी देने का ऐलान किया गया था। पावरलूम्स को सौर ऊर्जा से ऊर्जीकृत करने के लिए 10 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित किया गया था। साथ ही बनारस के 50 हज़ार बुनकरों की बेहतरी के लिए उन्हें बैंक से भी जोड़ने की योजना है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी के 34 जिले हथकरघा बाहुल्य हैं। राज्य में हथकरघा, बुनकरों और बुनकर सहकारी समितियों की संख्या क्रमश: 1.91 लाख, 0.80 लाख और 20,421 है। मऊ, अंबेडकर नगर, वाराणसी, मेरठ, कानपुर, झांसी, इटावा, संतकबीरनगर आदि जिले पावरलूम बहुल हैं। करीब 2.58 पावरलूम्स को सौर ऊर्जा से जोड़ा जाना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन महीने पहले यह भी दावा किया था कि वह उत्तर प्रदेश को देश का टेक्सटाइल हब बनाना चाहते हैं। सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर बुनकरों की बिजली पर निर्भरता पूरी तरह खत्म करने की योजना है।
इस योजना के तहत सरकार, बुनकरों को सोलर इनवर्टर देगी, जो इको फ्रेंडली होगी और ऊर्जा भी बचाएगी। साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता भी सुधरेगी। सरकार का यह भी दावा है कि करीब 25 हज़ार बुनकर, हैंडलूम विभाग के पोर्टल पर पंजीकृत हैं। योगी सरकार उनको और उनके हुनर को सम्मान देने के लिए संगठित क्षेत्र में लाना चाहती है। राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के तहत 19 हथकरघा क्लस्टरों के प्रस्ताव भारत सरकार को स्वीकृति के लिए भेजे गए। इन क्लस्टरों के विकास के लिए 25.55 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रस्तावित है। इसके प्राप्त होने पर 2,591 हथकरघा बुनकर लाभांवित होंगे। सरकार ने दावे तो बड़े-बड़े किए, लेकिन वो कभी हकीकत की ज़मीन पर नहीं उतरा इस बार के बजट में भी बुनकरों को मुंगेरी लाल के हसीन सपना दिखाने के अलावा कुछ नहीं किया जिस फ्लैट रेट बिजली की मांग बुनकर लगातार करता आ रहा है न ही उसपे कोई बात की और नही उसके लिए बजट इसू किया सरकार का हर वादा बुनकरों के लिए झूठा ही साबित हो रहा है
वहीं मनीष शर्मा ने यूपी के बुनकरों की बदहाली का ज़िक्र करते हुए योगी सरकार के बजट को झुनझुना बताया है। इनका कहना है कि यूपी में वन ‘डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोजेक्ट’ का सरकारी दावा छलावा साबित हुआ है। राज्य में निवेश के लिए सिर्फ हवा-हवाई दावे किए जा रहे हैं। छोटे-मझोले उद्योगों और बुनकरी को बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है। बुनकरों के बिजली बिल और सभी प्रकार की क़र्ज़ माफ़ी का मुद्दा उठाते हुए मनीष शर्मा कहते हैं की “गुज़रात के सूरत और भिवंडी में पावरलूम का काम संगठित तरीके से होता है और वहां पहले से ही सस्ती साड़ियां बन जाया करती हैं। यूपी में बहुत बड़ी तादाद में हथकरघा बुनकरों ने थोड़ी पूंजी लगाकर कुछ पावरलूम लगा लिए हैं जिनके लिए तीन-चार गुना बिजली का बिल दे पाना कठिन है। योगी सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली सस्ती बिजली की पासबुक को खत्म कर उन्हें बर्बादी की ओर धकेल दिया है। बिजली का बिल बढ़ने के बाद बुनकरों के लिए बाज़ार में टिके रह पाना मुश्किल है। इनके उत्पादों पर टैक्स लगातार बढ़ाए जा रहे हैं और लागत सामग्री की कीमतें आसमान छू रही हैं।”
वह आगे कहते हैं ”योगी सरकार और उसके आला अधिकारी सिर्फ घोषणाएं करने और सब्जबाग दिखाने में व्यस्त हैं। यूपी के बुनकर एक हज़ार करोड़ का कारोबार करते हैं। ऐसे में उनकी लागत सामग्री पर लगने वाले टैक्सों को खत्म कर देना चाहिए, पुरानी बिजली की पासबुक वाली व्यवस्था बहाल करनी चाहिए और साथ ही हैंडलूम और हथकरघा निगम जैसे सरकारी संस्थानों के ज़रिए उनके उत्पाद की खरीद को सुनिश्चित कर उसे देशी-विदेशी बाजारों में बेचने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि बुनकरों को बेमौत मरने से बचाया जा सके और उनकी ज़िंदगी की सुरक्षा हो।”
बनारस में बुनकरों की सबसे घनी आबादी पीलीकोठी, बड़ी बाज़ार, छित्तनपुरा, लल्लापुरा, बजरडीहा, सरैया, बटलोइया, नक्खीघाट आदि मुहल्ले हैं। किसी ज़माने में हथकरघे से गुलज़ार रहे इन मुहल्लों में पावरलूम की खटखट अधिक तेज़ी से सुनाई पड़ती थी और उसी तेज़ी से अब यहां बेकारी बढ़ रही है। आसमान छू रही महंगाई और बिजली के बढ़ते बिल के दुःख ने बुनकर समाज को भीतर से इतना तोड़ दिया है कि अब वो अपना दर्द नहीं बयां कर पाते।
सिर्फ बिजली के बिल ही नहीं, धागों की किल्लत और उसके दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी और उसको लेकर नित नई परेशानियों ने धीरे-धीरे बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी। इस शहर में भुखमरी और पलायन की दहला देने वाली घटनाएं बनारसी साड़ी बुनने वाले फनकारों की एक बड़ी आबादी को छिन्न-भिन्न करने लगी हैं। हालात ये हैं कि किसी बुनकर ने रिक्शा चलाने में जीवन की राह तलाशी, तो कोई मज़दूरी करने लगा और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली। परिवार के परिवार तबाह होते रहे। कई बार यह भी सुनने में आया कि बच्चों को भूख से तड़पता देख किसी-किसी ने कबीरचौरा में और बीएचयू के अस्पतालों में खून बेचकर भी रोटी का जुगाड़ किया। लोग इतने बेहाल, बदहवास और नाउम्मीद होते गए कि निराशा और हताशा उनका स्थायी भाव बन गया।
जब हमने बुनकरों सवाल किया की उनकी सरकार से मांग क्या है? इस पर सवाल किया तो उन्होंने हमे बताया कि देखिए मै आपको बताऊं के बुनकर दो प्रकार के है एक वो जो गद्दीदार या गिरता बुनकर कहलाते है जो कारीगर बुनकर को रॉ मेटेरियल दे कर ई बनारसी साड़ी बुनवाते है और उसे मार्किट में बेचते है और दूसरा बुनकर वो है जो कारीगर है और दोनो की मांग सरकार से अलग अलग है इस पर फिर अलग से बात होगी
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