29 जुलाई को, नागरिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अतिरिक्त महानिदेशक (कानून और व्यवस्था), एडीजी संजय सक्सेना से मुलाकात की, और महाराष्ट्र, कोल्हापुर के विशालगढ़ क्षेत्र के गजपुर गांव की जमीनी स्थिति से अवगत कराया और गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच से जुड़े कुछ प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला। बैठक का आयोजन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा किया गया था। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व, डॉल्फी डिसूजा, जिन्होंने बॉम्बे कैथोलिक सभा और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस का प्रतिनिधित्व किया, डॉ. फ्रेजर मस्कारेनहास एसजे, नॉर्बर्ट मेंडोंका और शाकिर तंबोली, एक्टिविस्ट और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य शामिल रहे।
एडीजी सक्सेना और प्रतिनिधिमंडल के बीच करीब 20 मिनट तक चली बैठक में एडीजी ने प्रतिनिधिमंडल को ध्यान से सुना और, आश्वासन दिया कि वे शिकायतों पर गौर करने के साथ मामले में उचित कार्रवाई करेंगे। ज्ञापन के माध्यम से प्रतिनिधिमंडल ने एडीजी को 14 जुलाई को गजपुर गांव में हुई घटनाओं का समय–वार ब्यौरा देते हुए, सांप्रदायिक हिंसा भड़कने में असामाजिक तत्वों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। ज्ञापन में कोल्हापुर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर का विवरण भी शामिल है, जिसमें भी सक्सेना से जांच में निष्पक्षता सुनिश्चित करने और हिंसा में शामिल लोगों के साथ–साथ क्षेत्र में अशांति और सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने की साजिश रचने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया।
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ज्ञापन सौंपते समय सदस्यों ने जोर देते हुए कहा कि मामले में पक्षपातपूर्ण तरीके से जांच की जा रही है, उसी का नतीजा है कि हिंसा भड़कने के दो सप्ताह बाद भी, हिंसा के सरगनाओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है। साथ ही, प्रतिनिधिमंडल ने माहौल खराब करने की कोशिशों को लेकर भी सक्सेना का ध्यान खींचा कि कैसे सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट प्रसारित किए जा रहे हैं, जो लोगों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए उकसा रहे हैं।
ज्ञापन में क्या कहा गया है?
विशेष तौर से गजपुर गांव में हुई लक्षित हिंसा, जिसमें मुसलमानों के 40-50 घर जला दिए गए, उनके वाहन नष्ट कर दिए गए और एक मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया, को लेकर दिए गए ज्ञापन में कहा कि “एक हिंसक भीड़ ने मस्जिद में घुसकर उसे आग लगा दी, मस्जिद को भारी नुकसान पहुंचाया गया। और पूरा इलाका भीड़ के हमलों की चपेट में आ गया, खासकर पड़ोस के मुसलमानों के घर। यही नहीं, घरों को गिराने व नष्ट करने के इरादे से गैस सिलेंडरों में विस्फोट किए गए और भीड़ द्वारा कीमती सामान लूट लिया गया। महोदय, आपस में जुड़ी हुई हिंसा की ये घटनाएं लगभग दो से तीन घंटे तक चलीं, लेकिन मौके पर मौजूद कथित पुलिस अधिकारियों द्वारा कोई गिरफ्तारी नहीं की गई।”
इसके अलावा ज्ञापन में यह भी कहा गया कि “एफआईआर क्रमांक क्राइम रजिस्टर नं. 224/2024 के अनुसार, संभाजी राजे छत्रपति दोपहर 1:30 बजे विशालगढ़ की तलहटी में मौजूद थे और कथित तौर पर उन्होंने ही, भड़काऊ भाषण देकर और नारे लगवाकर भीड़ को उकसाया था। यह वही भीड़ थी जिसने इसके बाद तलहटी में स्थित दुकानों में तोड़फोड़ और लूटपाट की थी। निष्क्रिय पुलिस की मौजूदगी में वहां खड़े चार पहिया और दो पहिया मोटरसाइकिलों में तोड़फोड़ की गई और उन्हें घाटी में फेंक दिया गया।“
उपरोक्तानुसार, प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन देकर उक्त घटना पर जवाबदेही और न्याय की मांग की। उनके अनुसार, विशालगढ़ और गजपुर हिंसा पुलिस और प्रशासन की अक्षम्य चूक, यहां तक कि मिलीभगत का परिणाम है, और अब तक जो जांच हुई है वह ढीली है। प्रतिनिधिमंडल ने हिंसा के संबंध में पुलिस द्वारा दर्ज की गई तीन अपर्याप्त एफआईआर पर भी प्रकाश डाला, जो अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए कानून के तहत आवश्यक प्रावधानों का उपयोग करने में विफल साबित हुई है।
ज्ञापन के माध्यम से उठाई गई मांगें:
प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन के साथ–साथ बैठक के माध्यम से इस बात पर जोर दिया कि उक्त घटना को जिस तरह से अंजाम दिया गया, उससे अल्पसंख्यक समुदाय में भय और आतंक का माहौल पैदा हो गया है, जिससे उन्हें अब ऐसा महसूस होने लगा है कि वे अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं, जो निश्चित रूप से भारत जैसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। प्रतिनिधिमंडल ने सभी संबंधित उपद्रवी तत्वों के खिलाफ तत्काल गिरफ्तारी की कार्रवाई करने का आग्रह किया क्योंकि तभी पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित हो सकेगा और भविष्य में वैमनस्य पैदा करने के ऐसे किसी भी प्रयास को रोका जा सकेगा।
प्रतिनिधिमंडल द्वारा उठाई गई मुख्य मांग थी कि जिला पुलिस प्रमुख महेंद्र पंडित को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए तथा शाहुवाड़ी के तहसीलदार और पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ विभागीय जांच की जाए, क्योंकि वे उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, भीड़ के खिलाफ उचित कार्रवाई करने तथा पीड़ितों की सुरक्षा करने में विफल रहे।
ज्ञापन में कहा गया, “इसलिए, घटना की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, हम महाराष्ट्र पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से अनुरोध करेंगे कि वे शीर्ष पुलिस अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में एक एसआईटी का गठन करें ताकि निडर, स्वायत्त और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित की जा सके और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके, भले ही वे वर्दीधारी व्यक्ति ही क्यों न हों। हम यह भी आग्रह करते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस प्रभावित और अन्य समुदायों के स्थानीय नेताओं के साथ संचार के चैनल खोले, बातचीत की सुविधा प्रदान करे और सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले ऐसे जानबूझकर भड़काए गए संघर्षों का स्थायी, वैध और टिकाऊ समाधान निकाले।“
उक्त ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में तीस्ता सेतलवाड़ (सचिव, सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस), डॉल्फी डिसूजा, डॉ. फ्रेजर मस्कारेनहास एस.जे. और शाकिर तंबोली शामिल थे।
संपूर्ण ज्ञापन यहाँ पढ़ा जा सकता है: