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नफरत का भंडाफोड़: अंतरधर्मीय शादियों की परिणिति हत्या में नहीं होती!

दावा: वीडियो में वक्ता, गौतम खट्टर दावा करता है कि 99.9 फीसदी मुस्लिम भोलीभाली हिंदू महिलाओं को फंसाकर प्यार में पड़ने को लगाते हैं। वक्ता कहता है कि इन महिलाओं में से 80 फीसदी की हत्या की गई है या बलात्कार किया गया है और बाकी नरक जैसा जीवन बिता रही हैं।

भंडाफोड़! खट्टर के बेबुनियाद दावों के समर्थन में ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं जो किसी अधिकारी या संस्था ने या किसी संगठन जारी किये हों। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) हर साल देश में होने वाले अपराधों पर रिपोर्ट जारी करता है जिनमें महिलाओं के खिलाफ अपराधों का ब्यौरा होता है, पर वह सांप्रदायिक आधार पर श्रेणीबद्ध नहीं किये जाते।

बताये गये आंकड़े सिर्फ सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ाने, लोगों के मन में डर बिठाने और हमारे देश में सांप्रदायिक वैमन्स्य का माहौल पैदा करने के लिए दिये गये हैं।

वक्ता की तरफ से जिस मामले का ज़िक्र किया गया है वह हत्या की घटना है जिसे हिंदुत्व समूह सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं। एक महिला के खिलाफ हिंसा व उसकी हत्या के मामले को उन सभी हिंदू महिलाओं के लिए एक सबक के तौर पर पेश किया जा रहा है जो जाति, धर्म व आस्था पर आधारित लोगों को अलग करने वाली सामाजिक सलाखों के पार जाने का फैसला करती हैं।

वीडियो:

वीडियो में वक्ता गौतम खट्टर श्रद्धा वाल्कर की उसके मित्र आफताब पूनावाला द्वारा की गई हत्या के मामले का ज़िक्र करता है। इस मामले में लड़का व लड़की साथ रह रहे थे और उनमें झगड़ा हुआ। नतीजतन, लड़के ने लड़की की गला घोंटकर हत्या की और उसके बाद उसके शरीर के 35 टुकड़े किये। चूंकि दोनों अलग-अलग धर्म से थे, वक्ता को वीडियो में उक्त मामले को लव जिहाद का मामला बताते सुना जा सकता है। अपनी बात के पक्ष में वह कुछ आंकड़े देता है1 जैसा कि बताया गया है कि उसने कहा कि 99.9 फीसदी मुस्लिम पुरुष भोलीभाली हिंदू महिलाओं को फंसाने व प्यार में पड़ने को लगाते हैं। इसके साथ वह यह भी कहता है कि ऐसी हिंदू महिलाएं आज भुगत रही हैं और पीड़ित हैं। वह यह भी कहता है कि इनमें से 80 फीसदी की या तो हत्या होती है या बलात्कार और बाकी नरक जैसा जीवन जीती हैं। वक्ता कहता है कि इसके लिए न तो मुस्लिम पुरुष और न ही हिंदू लड़कियों के अभिभावकों को दोष दिया जा सकता है को दोष दिया जा सकता है चूंकि वह उसे रोकने की कोशिश करते हैं। लेकिन लड़की चूंकि आधुनिक विचारों की होती है, वह अपने परिवार से नाता तोड़ती है और मुस्लिम पुरुष के साथ लिव-इन रिश्ते में जाती है। फिर बात को मामले से जोड़कर वक्ता कहता है कि लड़की तब दिल्ली जाती है, दोनों अपना-अपना कमाकर खाते हैं और प्यार का नाटक होता है। कुछ दिनों बाद, वही लड़की हत्या करने के बाद फ्रिज में डाल दी जाती है।

वीडियो यहां देखा जा सकता है: (20) Dr. Prachi Sadhvi on Twitter: “ध्यान से सुनना https://t.co/yPlkLp3lPU” / Twitter

तथ्यों से यह समझा जा सकता है कि यह महिलाओं के खिलाफ अपराध का मामला है, उसे सांप्रदायिक रंग दिया गया है।

भारत में रोज़ाना महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कई मामले होते हैं। छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार, घरेलु हिंसा, दहेज हत्या तक महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। इनमें से कुछ मामले मुख्यधारा के मीडिया द्वारा महिला की जाति, धर्म के आधार पर कवर किये जाते हैं, आफताब पूनावाला और श्रद्धा का मामला मीडिया द्वारा मुस्लिमों को बुरा दर्शाते हुए किया गया है।

केवल मुस्लिम पुरुष ही इस भयावह तरीके से किसी महिला की हत्या करते हैं, यह मिथक तोड़ने के लिए हमने निकट अतीत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सूची बनाई है, जिसमें आरोपी मुस्लिम पुरुष नहीं है।

भारत में घरेलु हिंसा के मामलों पर रौशनी डालने के लिए यहां पेश हैं कुछ आंखें खोल देने वाले आंकड़े। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) 2019-21 के पांचवें चक्र में बताया गया है कि 18-49 वर्ष के उम्र समूह की 31.5 फीसदी महिलाओं ने कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है।(1) एनएफएचएस आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई कारक हैं जिनमें उम्र, शिक्षा, आय आदि शामिल हैं। जहां 18-19 वर्ष उम्र समूह की  18.3 फीसदी महिलाओं ने पिछले साल या अपनी ज़िंदगी में कम से कम एक बार यौन अथवा शारीरिक हिंसा का सामना किया है वहीं यह संख्या 30-39 वर्ष उम्र समूह की महिलाओं में 35.3 फीसदी तक बढ़ जाती है। यह थोड़ा कम (35.2 फीसदी) होता है 40-49 वर्ष उम्र समूह की महिलाओं में। शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाएं ज्यादा शारीरिक या यौन शोषण की शिकार होती हैं। शिक्षा और आय का स्तर बढ़ने से महिलाओं के खिलाफ हिंसा की संभावना कम होती है लेकिन इससे उत्पीड़न का पूरी तरह से उन्मूलन नहीं होता, जैसा कि श्रद्धा प्रकरण दर्शाता है।(2)

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विषय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक आंकड़े दुनिया के 158 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जानकारी देते हैं (3) यह आंकड़े 2000 से 2018 के बीच ताज़ा राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण पर आधारित होते हैं। यह आंकड़े दिखाते हैं कि 15 से 49 वर्ष समूह की भारतीय महिलाओं में से 18 फीसदी ने पिछले 12 महीनों में पार्टनर से हिंसा का एक प्रकार झेला है। यह आंकड़ा भारत को 156 में 33वें स्थान पर रखता है, जहां कि तुलनात्मक अनुमान उपलब्ध था।

चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य में रखते हुए कहा जाए तो भारतीय महिलाएं बांग्लादेश (23 फीसदी) और अफगानिस्तान (35 फीसदी) की महिलाओं की तुलना में पार्टनर की हिंसा की शिकार कम और पाकिस्तान (16 फीसदी), नेपाल (11फीसदी) और श्रीलंका (4 फीसदी) समेत विश्व के बड़े औद्योगीकृत देशों की महिलाओं के मुकाबले ज्यादा होती हैं। यदि समूचे जीवन में पार्टनर की हिंसा का अनुभव करने की बात की जाए तो यह संख्या ज्यादा है। 15 से 49 वर्ष तक की 35 फीसदी भारतीय महिलाओं को पार्टनर से कम से कम किसी एक प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिससे 151 देशों (जहां तुलनात्मक अनुमान उपलब्ध है) में भारत की स्थिति 33वें स्थान पर है।

 

(1)  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) (rchiips.org)

(2)    https://www.hindustantimes.com/india-news/women-and-the-menace-of-intimate-partner-violence-101668709140890.html

(3)  महिलाओं के खिलाफ हिंसा फैलाव अनुमान (who.int)

नोट: इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के संदर्भ में देखियेगा कि एक जगह 158 देश, दूसरी जगह 156 देश और तीसरी जगह 151 देश दिया गया है तो यह आंकड़ा गलत है या आंकड़ा सही है और मैं समझ नहीं पाया, प्लीज़ क्रॉसचेक कर लीजियेगा।  मैंने जैसा मूल लेख में था, मेनटेन किया है।