भीमा-कोरेगांव के दोषियों को सज़ा देने के बजाय, जो लोग पीड़ितों के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें ही निशाना बनाते हुए, बेबुनियाद तानाशाही फ़रमान के तहत 28 अगस्त 2018 को देश भर के प्रमुख बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों, और मानवाधिकार के संरक्षकों को मोदी सरकार ने गिरफ्तार करना शुरू कर दिया.
जो शांतिप्रिय लोग हर प्रकार की हिंसा के विरुद्ध संघर्षरत हैं, जो सज़ा-ए-मौत तक को भी हिंसा मानते हुए मौत की सज़ा का उन्मूलन चाहते हैं. वैसे लोगों पर प्रधान मंत्री के हत्या की साज़िश जैसे बेबुनियाद आरोप लगाते हुए अनेक फ़र्ज़ी धाराओं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम UAPA के अंतर्गत धावा बोल दिया गया है.
अगस्त २८, २०१८ को जिस प्रकार पुणे पुलिस ने देश भर में मानवाधिकार संरक्षकों के घरों पर छपे मार कर उन्हें गैर कानूनी तरीके से हिरासत में ले लिया, हम उसका खंडन करते हैं. देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी होना आवश्यक है और ये हमारा संवैधानिक अधिकार है. इस दिशा में हमने भी अपनी जंग जारी राखी है. हमारा समर्थन करने के लिए यहाँ योगदान दें.
साथ ही गोदी मीडिया ने टीवी और सोशल मीडिया पर हमेशा की तरह झूट का ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया. परन्तु देशवासियों ने मोदिशाही का करारा जवाब देते हुए सोशल मीडिया पर आक्रोश व्यक्त करना शुरू कर दिया.
फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री और गोदी मीडिया के अर्नब गोस्वामी ने सोशल मीडिया पर #UrbanNaxal #UrbanNaxalCrackdown #UrbanNaxalKaPMPlot जैसे हैशटैग ट्रेंड करना शुरू कर दिया.
मगर मोदीशाही सरकार और गोदी मीडिया की साज़िश औंधे मुंह गिर गई जब देश के युवाओं ने #MeTooUrbanNaxal हैशटैग से जवाब देना शुरू कर दिया. आज पूरे सोशल मीडिया पर#MeTooUrbanNaxal छाया हुआ हुआ है, लोगों का कहना है कि यदि मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने को सरकार अर्बन-नक्सलवाद कहती है तो हम भी अर्बन-नक्सलवादी हैं.
कानून और प्रक्रिया के चौंकाने वाले उल्लंघन में, पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय की अवमानना करते हुए, पुणे पुलिस ने सुधा भारद्वाज के पारगमन रिमांड के खिलाफ दिए गए प्रवास को अनदेखा करते हुए पुणे की पुलिस ने लगभग मध्यरात्रि के जबरन उन्हें हिरासत में लेकर भागने का प्रयास किया!
श्रमिकों और आदिवासियों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर उनकी प्रतिबद्ध वकालत के लिए प्रसिद्ध वकील सुधा भारद्वाज को मंगलवार को मराठी (एक भाषा जिसे वह समझ नहीं सकती) में दिखाए गए दस्तावेज के बाद ‘गिरफ्तार’ किया गया था. न तो उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट और न ही उन्हें उस भाषा में एफआईआर दिया गया था जिसे वे पढ़ सकती थीं. वे उस समय अपने निवास में अकेली अपनी छोटी बेटी के साथ थीं. पुलिस ने उनके लैपटॉप, पेन ड्राइव और हार्ड ड्राइव को भी ज़ब्त कर लिया, जिससे “डेटा के साथ छेड़छाड़” की आशंका और भय पैदा हुए.
आखिरकार, जब वकील वृंदा ग्रोवर ने मध्यरात्रि के समय उच्च न्यायलय के ऑर्डर के साथ स्थानीय सीजेएम (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) को अवगत कराया, तो उन्होंने आदेश को पुनर्स्थापित करने के आदेश को पारित कर दिया. अब वकील सुधा भारद्वाज को 30 अगस्त तक हरियाणा से बाहर नहीं ले जाया सकता है. वे बदरपुर में अपने घर में नज़रबंद हैं.
आज सुप्रीम कोर्ट में देश भर में हो रही इस तानाशाही और गैरकानूनी हिरासत के खिलाफ 3:45 बजे याचिका पर सुनवाई हुई और सर्वोच्च न्यायला ने आदेश दिया की सभी गिरफ़्त में लिए गए मानवाधिकार संरक्षकों को उनके घरों में नज़रबंद रखा जाए ना की जेल में क़ैद किया जाए. ये भी एक महत्वपूर्ण विजय है.
बहरहाल दक्षिणपंथी ट्रोल मुह की खा बैठे. वे आवाज़ दबाने चले थे, स्वयं सोशल मीडिया पर आवाज़ तले दब गए. प्रस्तुत है सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे विरोध प्रदर्शन की एक झलक:
#JungJaari
परन्तु इस प्रकार की तानाशाही लोकतंत्र के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक है. इसका हर प्रकार से विरोध होना चाहिए, ताकि कोई भी तानाशाह संवैधानिक अधिकार और लोकतान्त्रिक अधिकार से छेड़छाड़ करने की हिम्मत न करे.
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