स्वतंत्र होने का साहस संपादक की मेज से

27, Nov 2017 | Teesta Setalvad

अन्याय अलग-अलग रूपों में सामने आते हैं, कोई एक-दूसरे की अपेक्षा कम दमनकारी नहीं होता। इस समझदारी पर आधारित एक जीवंत और समावेशी आंदोलन खड़ा करने के लिए  हमें सहयोग और आपसी गठबंधन बनाने की ज़रूरत है। अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए  हमें दूसरों के अधिकारों के लिए भी दृढ़तापूर्वक खड़ा होना चाहिए। सीजेपी(CJP) के विज़न/दृष्टि और कार्य दोनों को आगे बढ़ाने में यही मूलभूत समझदारी काम कर रही है। विगत 15 वर्षों के काम ने हमें सटीक बनाया है और हमारे लिए लाभप्रद रहा है तथा भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के अन्दर काम करने की अंतर्दृष्टि दी है। जहाँ न्याय, होने से ज्यादा, खारिज़ किया जाता है।

जीत की चमक, जिसमें सीजेपी(CJP) हिस्सेदारी रही है, ऐसी  व्यवस्था के बावजूद, होते हुए भी हासिल हुई है। पिछले 15 वर्षों की हमारी अदालतों और उसके बाहर की सीख तथा विसंरचना व बांटने वाली नफ़रत की सांप्रदायिक राजनीति के विखंडन में गुज़रे 3 दशक बेहद  कीमती रहे हैं। अब हम इन अनुभवों को मानवाधिकारों के संरक्षण के एक विस्तृत क्षेत्र में उपयोग और साझा करना चाहते हैं। अधिकार हनन के विभिन्न पहलुओं पर सक्रियता से काम कर रहे अन्य कार्यकर्ताओं से हम सीखना चाहते हैं। हमने महसूस किया है कि असली न्याय हासिल करने के लिए,  हाशिये पर ढकेले गए और अनसुने किये गए भारतीयों के लिए कानूनी से रूप दक्ष, ज्ञानप्राप्त और निडर विशेषज्ञों की ज़रूरत है जो नागरिकों के खड़े हो सकें।  जो एक जटिल और भयभीत करने वाली व्यवस्था के भीतर पीड़ितों और गवाहों की कुशलता से सहायता करने में सक्षम हों। हम विवेकवान और ऊर्जा से ओतप्रोत भारतीयों की एक बड़ी और व्यापक टीम बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो स्वतंत्रता, समानता, स्वच्छंदता, न्याय और बंधुत्व के अपरक्राम्य आदर्शों में निष्ठापूर्वक विश्वास करते हैं तथा इन मूल्यों को कमजोर करने वाले व्यक्तियों अथवा ताकतों के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए तैयार हैं। यही संविधान का मूल है जिस पर भारत टिका हुआ है।

कानून के विशेषज्ञ के तौर पर एक बार सुविदित रूप से कहा था, “कानून और संविधान स्वतंत्रता के कागज़ी रक्षक हैं। लोगों में स्वतंत्र होने की इच्छा होनी चाहिए।”

सीजेपी मुक्ति का साहस रखने में विश्वास करता है। मुक्ति, विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने की, बहस और असंतोष को प्रोत्साहित करने की, सरकारों की दमनकारी कदमों को चुनौती देने की; चाहे वह पुलिस के माध्यम से हो या किसी अन्य संस्था के माध्यम से। एक ऐसी प्रतिबद्धता का साहस, जिसकी चिंताओं के मूल में मानवीय ज़रूरत, गरिमा और अधिकार हो, इसका मतलब यह भी है कि राज्य और सरकारी एजेंसियों द्वारा की जा रही दमनकारी कार्रवाइयों के साथ-साथ, समान तरीके से  गैर-सरकारी ताकतों के फैलाए व समाज व अपने पारिवारिक पदानुक्रम के भी भीतर के अन्यायों और अत्याचारों को चुनौती देता हो, जिसे संस्कृति और परंपरा के नाम पर प्रोत्साहित किया जाता रहा है।

सोच और क्रियान्वयन में ऐसा तालमेल ही आज हम सभी ‘प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता के द्वीपों’ की मदद कर सकता है, जिससे ज्वार की लहर का आकार लिया जा सके और अन्याय का नामो-निशान मिटाया जा सके। इस 26 नवम्बर, 2017, संविधान दिवस के दिन हम उस आदर्श और सपने की ओर खुद को समर्पित करते हैं।

 

 

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